Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 May, 2024 11:26 AM
एक संत अक्सर तीर्थयात्रा पर रहते थे और उनका नियम था कि वह ऐसे ही लोगों के घर रुकते थे जिनका आचार-विचार अच्छा हो और घर पवित्र हो। एक बार उन्होंने वृंदावन जाने
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Inspirational Context: एक संत अक्सर तीर्थयात्रा पर रहते थे और उनका नियम था कि वह ऐसे ही लोगों के घर रुकते थे जिनका आचार-विचार अच्छा हो और घर पवित्र हो। एक बार उन्होंने वृंदावन जाने का सोचा लेकिन पहुंचने से पहले ही जब वह कुछ मील की दूरी पर थे तब शाम हो चुकी थी। उन्होंने सोचा कि किसी गांव में रात बिता लेता हूं और सवेरे उठकर फिर से यात्रा शुरू कर दूंगा।
स्वयं के नियम अनुसार उनको ऐसा घर खोजना था जो उनके रहने लायक हो। उन्होंने इस बारे में कुछ लोगों से पूछताछ की तो किसी ने उन्हें बताया कि ब्रज के पास वाले गांव के सभी लोग बड़े धार्मिक हैं।
संत उस गांव में गए और एक गृहस्थ के घर का दरवाजा खटखटाया। गृहस्थ के बाहर आने पर कहा, “भाई क्या मैं आपके घर रात बिता सकता हूं ? वह दोबारा बोले, लेकिन मेरा एक नियम है कि मैं केवल उसी के घर का भोजन और पानी ग्रहण करता हूं जिसके घर का आचार-विचार शुद्ध हो।”
इस पर उस व्यक्ति ने कहा, “महाराज माफ कीजिए मैं तो इस गांव का साधारण-सा इंसान हूं। हालांकि इस गांव के बाकी सभी लोग मुझसे कहीं ज्यादा पवित्र हैं।”
इस पर संत कुछ नहीं बोले और आगे बढ़ गए। आगे जाकर एक और व्यक्ति से उन्होंने रात बिताने के लिए विनती की। दूसरे व्यक्ति ने भी विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज मैं खुद को इतना पवित्र नहीं मानता जितना इस गांव के अन्य लोग हैं। फिर भी यदि आप मेरे घर में ठहरेंगे तो मेरा परम सौभाग्य होगा। संत बिना कुछ बोले आगे बढ़ गए। अब आगे जिसके भी घर गए सभी ने लगभग यही बात कही।
अब संत को अपनी खुद की सोच पर लज्जा महसूस होने लगी कि वह एक संत होकर दूसरों को छोटा समझने की सोच रखते हैं, जबकि एक गृहस्थ अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए भी कितना उत्तम आचरण लिए हुए है।
अब वह सबसे पहले वाले आदमी के पास गए और कहा, “माफ कीजिए, मुझे लगता है कि इस गांव का हर एक आदमी पवित्र है लेकिन मैं आपके घर रुकना चाहूंगा।”
प्रसंग का सार यह है कि हमें किसी को भी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए।