Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Jul, 2024 08:13 AM
काशी में कई वर्षों तक साथ रहकर दो पंडितों ने धर्म और शास्त्रों का अध्ययन किया। शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों अपने-अपने गांव की ओर चल पड़े।रास्ते में दोनों ने एक नगर
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काशी में कई वर्षों तक साथ रहकर दो पंडितों ने धर्म और शास्त्रों का अध्ययन किया। शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों अपने-अपने गांव की ओर चल पड़े।रास्ते में दोनों ने एक नगर में रात्रि विश्राम किया। नगर के सबसे धनी सेठ के यहां ठहरे। सेठ ने उनके रहने की व्यवस्था की और फिर अपने लोगों से कहा कि दोनों महानुभावों के भोजन का भी बंदोबस्त किया जाए।
इस बीच, समय पाकर सेठ दोनों के पास पहुंचा और उनसे चर्चा करने लगा। सेठ अनुभवी था। वह जान गया कि दोनों पंडितों में बहुत ज्यादा घमंड है। साथ ही दोनों एक-दूसरे को मूर्ख समझते हैं।
सेठ ने दोनों से अलग-अलग बात कर एक-दूसरे से भी पूछा। जो जवाब मिले, वे सेठ को अच्छे नहीं लगे। उन्होंने देखा कि ये दोनों काशी जैसी जगह पर सालों अध्ययन करके आए हैं, लेकिन एक-दूसरे का सम्मान करना नहीं सीखा।
बहरहाल, भोजन का समय हो गया था। सेठ ने दोनों को बड़े आदरपूर्वक भोजन कक्षा में बुलाया। एक की थाली में चारा और दूसरे की थाली में भूसा परोसा। यह देखकर दोनों पंडित आगबबूला हो गए। गुस्से में आकर कहने लगे कि क्या हम जानवर हैं जो यह चारा और भूसा खाएंगे। सेठ होकर तुम हमारा अपमान कर रहे हो। यह लक्ष्मी द्वारा सरस्वती का अपमान है।
इस पर सेठ ने बड़ी ही शांति से जवाब दिया, “एक को थाली में चारा और दूसरे को भूसा परोसा गया, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। जब मैंने आपमें से एक से दूसरे के बारे में पूछा था, तो एक ने कहा था कि दूसरा तो बैल है। वहीं दूसरे से पहले के बारे में पूछा था तो उसने कहा था कि वह गधा है। आप दोनों ने ही एक-दूसरे को बैल और गधा बताया तो मैंने उसी हिसाब से चारा और भूसा थाली में परोस दिया।”
इतना सुनते ही दोनों ज्ञानियों की आंखें खुल चुकी थीं। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था। उन्होंने एक-दूसरे के प्रति ऐसी सोच रखने के लिए भी खेद जताया।