Edited By Prachi Sharma,Updated: 05 Aug, 2024 10:05 AM
प्रसंग उस समय का है जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के डरबन नगर में वकालत करते थे। उसी शहर में एक प्रसिद्ध पारसी सेठ रुस्तमजी भी रहते थे। एक दिन रुस्तमजी
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Mahatma Gandhi Inspirational Story: प्रसंग उस समय का है जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के डरबन नगर में वकालत करते थे। उसी शहर में एक प्रसिद्ध पारसी सेठ रुस्तमजी भी रहते थे। एक दिन रुस्तमजी महात्मा गांधी के पास आए और खुद पर दर्ज हुए कर चोरी के मुकद्दमे के बारे में गांधी जी को बताया।
रुस्तमजी चाहते थे कि महात्मा गांधी उनका मुकद्दमा लड़ें। उन्होंने अपने मन की बात गांधी जी से बताई। महात्मा गांधी ने रुस्तमजी से कहा कि यदि आपने कर की चोरी की है तो सारी बात मुझे सच-सच बता दीजिए।
गांधी जी की बात का रुस्तमजी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उनके सामने यह कबूल किया कि उन्होंने इस समय ही नहीं बल्कि पहले भी कई बार कर की चोरी की है।
यह सुनकर गांधी जी ने कहा, “यदि यही सच्ची बात आप अदालत में भी कह दें और इस बात का मुझे पूरा आश्वासन दें तभी मैं आपका मुकद्दमा लड़ सकता हूं।”
रुस्तमजी ने अपनी स्वीकृति प्रदान की और गांधी जी उस मुकद्दमे को लड़ने के लिए तैयार हो गए। अदालत में गांधी जी ने कटघरे में खड़े रुस्तमजी से दो सवाल किए, “क्या आपने कर की चोरी की है और क्या आपने इससे भी पहले कर की चोरी की है ?”
रुस्तमजी का उत्तर था, “जी हां, मैंने पहले भी की है और अनेक बार कर की चोरी की है।” इसके पश्चात रुस्तमजी ने सिलसिलेवार सारी बात अदालत के सामने पेश कर दी।
तब गांधी जी ने जज से कहा, “जज साहब, मेरे मुवक्किल ने सारी बातें सच-सच कह दी हैं क्योंकि उसका हृदय परिवर्तन हो चुका है। अब आपको अधिकार है कि आप इसे योग्य सजा दें।”
जज पर गांधी जी की सत्यनिष्ठा का ऐसा प्रभाव पड़ा कि जज ने रुस्तमजी को कोई सजा नहीं दी और रुस्तमजी ने भी फिर भविष्य में कभी कर की चोरी नहीं की।