Inspirational Context: अपनी भरपूर शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो त्याग दें ये भावना

Edited By Prachi Sharma,Updated: 10 Aug, 2024 09:28 AM

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प्राचीन काल में एक गांव में दीपक नामक एक नवयुवक रहता था। वह बहुत ही धार्मिक विचारों का था और हमेशा ही साधु-महात्माओं के दर्शन किया करता था। इसके

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Inspirational Context: प्राचीन काल में एक गांव में दीपक नामक एक नवयुवक रहता था। वह बहुत ही धार्मिक विचारों का था और हमेशा ही साधु-महात्माओं के दर्शन किया करता था। इसके लिए वह मठों में तथा तीर्थों का भ्रमण करता रहता। एक बार वह काफी समय एक सिद्ध योगी के संग रहा और योगी की खूब सेवा की। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर योगी ने कहा ‘‘हे वत्स ! यदि तुम्हारी कोई इच्छा हो तो मैं उसे पूरी कर सकता हूं।’’

दीपक ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘मैं योग का रहस्य जानना चाहता हूं और इसके चमत्कार से ख्याति प्राप्त करना चाहता हूं।’’

योगी ने उसे योगाभ्यास कराया। जिससे दीपक ने अपने अंदर विचित्र शक्ति का अनुभव किया। कुछ समय बाद वह अकेला घूमने निकला। मार्ग में उसने देखा कि कुछ शिकारी लोहे के पिंजरे में सिंह (शेर) को डाल कर ले जा रहे हैं। दीपक ने अपना योग बल दिखाने के लिए मंत्र पाठ किया। मंत्र पढ़ने के साथ ही पिंजरा खुल गया और भयंकर सिंह ने पिंजरे से निकल कर एक शिकारी पर हमला कर उसको मार दिया। अन्य शिकारियों ने पुन: हिम्मत जुटा सिंह को पकड़ पिंजरे में बंद कर दिया।

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यह देखकर दीपक ने बहुत ही अहंकार से हंसते हुए कहा, ‘‘क्या फिर से सिंह को भगा दूं ?’’

शिकारी दीपक को जादूगर जान कर मारने दौड़े। दीपक पिटते-पिटते बेहोश होकर गिर पड़ा।

कुछ देर बाद वह किसी तरह उठ कर आगे चला। एक पर्वतीय गांव में, उसने देखा कि लोग पहाड़ों की अधिकता से खेती करने में असमर्थ और बहुत दुखी हैं। दीपक ने अहंकार में सोचा कि यदि मैं पर्वतों को हटा दूं तो लोग मेरा सत्कार करेंगे। उसने मंत्र पाठ किया। धीरे-धीरे पर्वत निकल-निकल कर टूटने आरंभ हुए। गांव वालों के घर नष्ट होने लगे। लोग उसकी शरण में आए। दीपक पर्वतों को चलाना तो जानता था किन्तु उन्हें रोक नहीं सकता था इसलिए वह उनका उद्धार न कर सका। लोगों ने उसे खूब पीटा।

वह किसी तरह वहां से भाग कर मछुआरों के गांव में पहुंचा जहां मछलियों का अभाव था। दीपक ने उन्हें बुलाकर फिर अहंकारवश कहा, ‘‘आज मैं योग का चमत्कार दिखाता हूं, आप लोग ठहरिए।’’

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उसने मंत्र बल से तालाबों में मछलियां भर दीं। मछुआरों ने जाल बांध दिए। घर-घर लोग मछलियां पकाने लगे। उसकी महिमा सर्वत्र फैल गई।

यह भी एक विचित्र संयोग ही रहा कि वे सभी मछलियां जहरीली थीं। जिन लोगों ने भी मछलियां खाईं, उनमें से कुछ तो मर भी गए बाकी मरणासन्न हो गए। बचे हुए लोगों ने लाठियों से दीपक को पकड़ कर बहुत मारा। उनकी मार से बेहोश होकर वह गिर पड़ा। ग्रामीणों ने उसको मरा हुआ मान कर जंगल में फैंक दिया। आधी रात में जब उसको कुछ होश आया तो वह चिल्लाया। वह स्वयं उठकर नहीं चल सकता था। उस जंगल में एक साधु रहता था। जब साधु ने उसकी चीत्कार सुनी तो उसने दीपक को उठाया और अपने आश्रम में ले गया।

औषधियों से उसकी पीड़ा को शांत किया। प्रात:काल दीपक ने सारी कहानी महात्मा को सुनाई और बोला, ‘‘मैं अलौकिक शक्ति वाला हूं किन्तु न मेरी प्रतिष्ठा है न मुझे शांति है, मैं नहीं जानता कि इसका क्या कारण है ?’’

महात्मा ने कहा, ‘‘इसमें तुम्हारा ही दोष है, तुम अपनी शक्ति का सदुपयोग करना नहीं जानते। अहंकार युक्त होकर व्यर्थ ही मिथ्या विज्ञापन और कौतुक प्रदर्शन करते हो। शक्ति का उपयोग तो अहंकार त्याग कर दीन-दुखियों की सेवा करना है। इसी से यश और सुख प्राप्त होता है। कौतुक तो जादूगर करते हैं।’’

दीपक का अज्ञान नष्ट हुआ। महात्मा से लोक शिक्षण की शिक्षा पाकर वह समाज सेवा में लग गया। उसने अपनी शक्ति का सदुपयोग किया। उसके प्रभाव से कुछ समय बाद उसने संसार में कीर्ति प्राप्त की।

सीख : मित्रों, हमें अहंकार को त्याग देना चाहिए तथा परोपकारी कार्य करने चाहिए।
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