Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Aug, 2024 07:41 AM
श्वेतकेतु उद्दालक ऋषि का पुत्र था। एक बार पुत्र ने पिता से पूछा, “आत्मा क्या है ?”
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Inspirational Story: श्वेतकेतु उद्दालक ऋषि का पुत्र था। एक बार पुत्र ने पिता से पूछा, “आत्मा क्या है ?”
ऋषि ने बेटे से एक एक नमक की डली मंगवाई और कहा- “बेटा ! इसे एक बर्तन में डालकर उसमें पानी भर दो।” बेटे ने वैसा ही किया।
अगले दिन उद्दालक ने बेटे को बुलाकर कहा, “बेटा कल तुमने जल पात्र में नमक की डली डाली थी, उसे निकाल कर मेरे पास ले आओ।”
श्वेतकेतु बोला, “पिता जी नमक तो इसमें दिखाई ही नहीं दे रहा।
वह तो घुल गया है।” “अच्छा, इस जल को चख कर देखो।”
पिता जी, “यह नमकीन है।”, “अच्छा ऊपर का पानी नीचे गिरा दो और बीच के पानी को चखो।”
“पिता जी यह भी नमकीन है।” “अच्छा अब नीचे का थोड़ा-सा पानी रहने दो, शेष गिरा दो,” “गिरा दिया पिताजी।”
“अब इसे चखो।” “यह भी नमकीन है पिता जी।”
उद्दालक ने समझाया, “बेटा ! जिस तरह नमक पानी में घुल मिल गया है और यह दिखाई नहीं दे रहा, ठीक ऐसे ही हमारी आत्मा शरीर में रमी हुई है।
शरीर और आत्मा पानी और नमक की तरह ही भिन्न-भिन्न होकर भी अभिन्न हैं। जैसे पानी के सूख जाने पर भी नमक का अस्तित्व बना रहता है, उसी तरह शरीर के न रहने पर भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है।”