Edited By Prachi Sharma,Updated: 28 Aug, 2024 12:13 PM
एक बार संत रामानुज किसी गांव में ठहरे हुए थे। बहुत से लोग उनके दर्शन करने आए। उनमें से एक आदमी ने रामानुज से कहा-मुझे परमात्मा को
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Inspirational Context: एक बार संत रामानुज किसी गांव में ठहरे हुए थे। बहुत से लोग उनके दर्शन करने आए। उनमें से एक आदमी ने रामानुज से कहा-मुझे परमात्मा को पाना है, मार्ग बताइए।
रामानुज बोले, तूने कभी किसी से प्रेम किया या नहीं ?” वह बोला, “मैं प्रेम के झंझट में कभी नहीं पड़ा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है, पाना है।” आदमी ने उत्तर दिया।
रामानुज ने दूसरी बार फिर यही प्रश्न किया तो उसने वही उत्तर दिया। रामानुज फिर बोले, “सोचकर बताओ, जरूर किसी न किसी से थोड़ा-बहुत प्रेम किया होगा तूने।
आदमी ने सोचा कि यदि मैं कहूंगा कि मैंने प्रेम किया है तो संत जी कहेंगे कि पहले प्रेम के रोग से छुटकारा पाओ, फिर मेरे पास आना। इसलिए उसने कहा कि उसने कभी प्रेम की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।
उसके मुंह से ऐसा सुनकर रामानुज बोले, बस तो मुझे क्षमा करो भाई, तुम कहीं और जाओ व परमात्मा की खोज करो। मेरा अनुभव तो यह कहता है कि जिस आदमी ने जिंदगी में कभी प्रेम नहीं किया, वह परमात्मा को पाने की बात तो दूर उनके निकट तक भी नहीं पहुंच सकता।
परमात्मा को पाने के लिए पहले उसको पुत्र-पुत्रियों से प्रेम करना सीखना होगा। आदमी के भीतर प्रेम होना चाहिए। चाहे वह थोड़ी मात्रा में ही क्यों न हो ? उस प्रेम को इतना बड़ा रूप दिया जा सकता है कि परमात्मा को पाया जा सके।