Edited By Prachi Sharma,Updated: 30 Aug, 2024 12:32 PM
एक संत ने अपने अनुयायियों को उपदेश देते हुए कहा, “हर किसी को धरती की तरह सहनशील व क्षमाशील होना चाहिए। लोग इसके साथ कुछ भी करें, किंतु
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एक संत ने अपने अनुयायियों को उपदेश देते हुए कहा, “हर किसी को धरती की तरह सहनशील व क्षमाशील होना चाहिए। लोग इसके साथ कुछ भी करें, किंतु यह बदले में उन्हें लाभ ही देती है। हमें हर हाल में क्रोध से बचना चाहिए। क्रोध ऐसी आग है जो सामने वाले व्यक्ति से पहले खुद क्रोध करने वाले को जलाती है।”
यह सुनते ही उपस्थित श्रोताओं में से एक व्यक्ति उठा और कहने लगा, “मैं यह नहीं मानता। यह सब कहना आसान है किंतु करना मुश्किल। लोग व्यर्थ ही आपकी पाखंडपूर्ण बातें सुनकर आपको सम्मान देते हैं। आपकी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखतीं।”
संत चुपचाप बैठे रहे। आखिर में वह व्यक्ति बड़बड़ाते हुए बाहर निकल गया। अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ और उसने संत की बातों पर मनन किया तो उसे लगा कि संत सही कर रहे थे।
उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा और वह संत से क्षमा याचना करने उनके आश्रम में पहुंचा और उनके चरणों में गिरकर बोला, “मुझसे बड़ी भूल हो गई। मेरा अपराध क्षमा करें।”
संत ने पूछा, “तुम कौन हो भाई और मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो ?”
व्यक्ति बोला, “मैं वही हूं जिसने कल आपको अपमानित किया था। मैं अपने बर्ताव के लिए शर्मिंदा हूं। मुझे माफ कर दें।”
संत ने कहा, “कल जो हुआ उसे तो मैं कब का भूल चुका, और तुम अब भी वहीं अटके हुए हो ? तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो गया और तुमने पश्चाताप कर लिया, यही बहुत है। अब आज में प्रवेश करो। बुरी बातें व घटनाएं याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते हैं। बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो। ”
यह सुनकर वह व्यक्ति एक बार फिर संत के समक्ष नतमस्तक हो गया।