Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Sep, 2024 08:45 AM
खुदीराम बोस एक दिन ईश्वर चंद्र विद्यासागर के निवास स्थान पर उनसे मिलने गए। विद्यासागर ने उन्हें खाने के लिए कुछ संतरे दिए। खुदीराम छील कर संतरों के छिलकों
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Inspirational Context: खुदीराम बोस एक दिन ईश्वर चंद्र विद्यासागर के निवास स्थान पर उनसे मिलने गए। विद्यासागर ने उन्हें खाने के लिए कुछ संतरे दिए। खुदीराम छील कर संतरों के छिलकों को कूड़ेदान में फेंकने लगे और उसके टुकड़े खाने लगे।
यह देख कर विद्यासागर बोले, ‘‘देखो भाई, इन्हें बेकार समझ कर न फैंको। ये भी किसी के उपयोग की वस्तु हैं। इन्हें खाकर किसी की भूख मिट सकती है।’’
यह सुन कर खुदीराम को काफी आश्चर्य हुआ और वह बोले, ‘‘भला संतरे के छिलके किसके काम आ सकते हैं।’’
विद्यासागर हंसकर बोले, ‘‘आप संतरों के छिलकों को खिड़की के बाहर रख दें और वहां से हट जाएं तो अभी आपको मालूम पड़ जाएगा कि ये किसके उपयोग की वस्तु हैं।’’
खुदीराम कुछ संतरे के छिलकों को खिड़की के बाहर रख कर अपने स्थान पर आकर बैठ गए। इतने में कुछ कौवे उन्हें लेने आ गए।
अब विद्यासागर बोले, ‘‘देखो, जब तक कोई वस्तु किसी प्राणी के लिए उपयोगी हो, तब तक उसे फेंकना नहीं चाहिए।’’
‘‘उसे इस प्रकार रखना चाहिए कि उसमें धूल-मिट्टी न लगे और वह किसी न किसी जीव के उपयोग में आ जाए। जिन चीजों को आप बेकार समझते हैं वे किसी का पेट भर सकती हैं।’’