Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Nov, 2024 06:00 AM
एक बार 8 साल का बच्चा एक रुपए का सिक्का मुट्ठी में लेकर दुकान पर जाकर सिक्का दिखा कर पूछने लगा, ‘‘क्या इस सिक्के से आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे ?’’
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Inspirational Story: एक बार 8 साल का बच्चा एक रुपए का सिक्का मुट्ठी में लेकर दुकान पर जाकर सिक्का दिखा कर पूछने लगा, ‘‘क्या इस सिक्के से आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे ?’’
दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक बच्चे को निकाल दिया।
बच्चा पास की दुकान में जाकर एक रुपए का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा।
काफी समय बाद दुकानदार ने पूछा, ‘‘ए लड़के तुम क्या चाहते हो?’’
लड़के ने कहा, ‘‘मुझे ईश्वर चाहिए। आपकी दुकान में हैं क्या ?’’
दूसरे दुकानदार ने भी लड़के की बात सुन उसे भगा दिया।
लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा।
उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा, ‘‘तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो, क्या करोगे ईश्वर लेकर ?’’
पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें जगमगाईं। उसने सोचा कि लगता है कि इसी दुकान पर ईश्वर मिलेंगे।
बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया, ‘‘इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिन भर काम करके मेरे लिए खाना लाती हैं लेकिन अब वह अस्पताल में हैं।
अगर मेरी मां मर गईं तो मुझे कौन खिलाएगा ? डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे ?’’
‘‘हां, मिलेंगे!! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास ?’’ दुकानदार बोला।
‘‘सिर्फ एक रुपया।’’ लड़के ने कहा।
‘‘कोई दिक्कत नहीं है। एक रुपए में भी ईश्वर मिल सकते हैं।’’
दुकानदार ने बच्चे के हाथ से एक रुपए लेकर पाया कि एक रुपए में एक गिलास पानी के अलावा उसकी दुकान में बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है, इसलिए उसने बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा, ‘‘यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।’’
अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे की मां का ऑपरेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं। डिस्चार्ज के कागज पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए।
डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, ‘‘टैंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है।’’
महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी, उसमें लिखा था, ‘‘मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है। मैं तो सिर्फ एक जरिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना ही चाहती हैं तो अपने अबोध बच्चे को दीजिए, जो सिर्फ एक रुपया लेकर नासमझों की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा। उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते हैं।’’
विश्वास इसी को कहते हैं। ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की जरूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वह एक रुपए में भी मिल सकते हैं।