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Inspirational Context: समानता में ही छुपा है परम ज्ञान

Edited By Sarita Thapa,Updated: 16 Apr, 2025 03:04 PM

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Inspirational Context: ज्ञानेश्वर के संन्यासी पिता ने गुरु की आज्ञा से गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया। वह संन्यासी के पुत्र थे। वह अपने दो भाइयों निवृत्तिनाथ और सोपानदेव तथा छोटी बहन मुक्ता बाई के साथ आलंदी से चल कर पैठण आए।

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Inspirational Context: ज्ञानेश्वर के संन्यासी पिता ने गुरु की आज्ञा से गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया। वह संन्यासी के पुत्र थे। वह अपने दो भाइयों निवृत्तिनाथ और सोपानदेव तथा छोटी बहन मुक्ता बाई के साथ आलंदी से चल कर पैठण आए। उन्हें शास्त्रज्ञ ब्राह्मणों से शुद्धिपत्र लेना था। एक दुष्ट ने उन्हें चिढ़ाने के लिए एक भैंसे को दिखाकर कहा, “इस भैंसे का नाम भी ज्ञानदेव है।”

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“अवश्य हो सकता है। उस भैंसे और हम में अंतर क्या है? नाम और रूप तो कल्पित हैं, दोनों में आत्मतत्व एक ही है। भेद की कल्पना ही अज्ञान है।” 

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ज्ञानदेव बोले। यह सुनकर उस दुष्ट ने भैंसे की पीठ पर चाबुक मारने शुरू कर दिए कि जब आत्मतत्व एक ही है, तो दोनों को समान पीड़ा होनी चाहिए। लेकिन आश्चर्य चाबुक तो पड़ रहे थे भैंसे पर, पर मार के निशान सचमुच उभर कर आ रहे थे ज्ञानेश्वर की पीठ पर। यह देखकर मूर्ख ज्ञानेश्वर के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। 

तब ज्ञानेश्वर ने कहा, “तुम भी ज्ञानदेव ही हो, क्षमा कौन किसे करेगा? किसी ने किसी का अपराध किया हो तो क्षमा की बात आए लेकिन सब में तो एक ही प्रभु व्याप्त है।”

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