Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 Apr, 2025 11:16 AM
एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। ऐसी मूर्तियां बनाता था जिन्हें देखकर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था। आसपास के सभी गांवों में उसकी प्रसिद्धि थी। लोग उसकी मूर्तिकला के कायल थे इसलिए उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था।
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Inspirational Context: एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। ऐसी मूर्तियां बनाता था जिन्हें देखकर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था। आसपास के सभी गांवों में उसकी प्रसिद्धि थी। लोग उसकी मूर्तिकला के कायल थे इसलिए उस मूर्तिकार को अपनी कला पर बड़ा घमंड था।
जीवन के सफर में एक वक्त ऐसा आया जब उसे लगने लगा कि अब उसकी मृत्यु होने वाली है। उसे जब लगा कि वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगा तो वह परेशानी में पड़ गया। यमदूतों को भ्रमित करने के लिए उसने एक योजना बनाई। उसने हू-ब-हू अपने जैसी 10 मूर्तियां बनाईं और खुद उन मूर्तियों के बीच जाकर बैठ गया।
जब यमदूत उसे लेने आए तो एक जैसी 11 आकृतियों को देखकर दंग रह गए। वे उस मूर्तिकार को पहचान ही नहीं पा रहे थे कि उन मूर्तियों में से असली मनुष्य कौन है? वे सोचने लगे अब क्या किया जाए ? अगर मूर्तिकार के प्राण नहीं ले सके तो सृष्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियों को तोड़ा गया तो कला का अपमान होगा।
अचानक एक यमदूत को मानव स्वभाव के सबसे बड़े दुर्गुण अहंकार को परखने का विचार आया।
उसने मूर्तियों को देखते हुए कहा, “कितनी सुंदर मूर्तियां बनी हैं, लेकिन मूर्तियों में एक कमी है। काश मूर्तियां बनाने वाला मेरे सामने होता तो मैं उसे बताता मूर्तियां बनाने में क्या गलती हुई है।”
यह सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा।
उसने सोचा मैंने अपना पूरा जीवन मूर्तियों को बनाने में समर्पित कर दिया, भला मेरी मूर्तियों में क्या गलती हो सकती है ?
वह बोल उठा, “कैसी कमी ?”
झट से यमदूत ने उसे पकड़ लिया और कहा, “बस यही गलती कर गए तुम अपने अहंकार में कि बेजान मूर्तियां बोला नहीं करतीं।”