LIFE के हर मोड़ पर काम आते हैं तुलसीदास जी के ये दोहे

Edited By Jyoti,Updated: 30 May, 2019 11:03 AM

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हिंदू धर्म के शास्त्रों में ऐसे कई मंत्र दिए गए जो व्यक्ति के जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। मंत्रों के अलावा इन शास्त्रों में कई महान विभूतियों द्वारा कुछ ऐसे दोहे भी वर्णित हैं

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हिंदू धर्म के शास्त्रों में ऐसे कई मंत्र दिए गए जो व्यक्ति के जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। मंत्रों के अलावा इन शास्त्रों में कई महान विभूतियों द्वारा कुछ ऐसे दोहे भी वर्णित हैं, जिनका अगर जातक अर्थ समझ लेता है तो उसका जीवन सार्थक हो जाता है। अब सोच रहे होंगे कि हिंदू धर्म में तो बहुत से ऐसे रचयिता हैं जिन्होंने शास्त्रों में अपने ज्ञान को बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया है। हम किस की बात कर रहे हैं, तो आपको बता दें कि हम बात कर रहे गोस्वामी तुलसीदास जी की। जिनके शास्त्रों में ऐसे दोहे वर्णित हैं, जो किसी भी आम व्यक्ति के लिए बहुत ज़रूरी है। तो चलिए जानते हैं इन दोहों के बारे में जिनका प्रयोग मंत्रों की तरह भी किया जा सकता है।
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दोहा-
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।
अर्थ- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, किसी भी व्यक्ति को विपत्ति के समय में घबराकर हार नहीं माननी चाहिए। बल्कि ऐसे हालातों में हमेशा अपने अच्छे कर्म, सही विवेक और बुद्धि से काम लेना चाहिए। क्योंकि मुश्किल समय में साहस और अच्छे कर्म ही व्यक्ति का साथ देते हैं।

दोहा-
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजिआर।
अर्थ- तुलसीदास जी कहते है अगर आप अपने चारों तरफ खुशहाली चाहते हैं तो अपने वाणी पर काबू रखें। गलत शब्द बोलने की जगह राम नाम जपते रहिए इससे आप भी खुश रहेंगे और आपके घरवाले भी खुश रहेंगे।

दोहा-
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजिआर।
अर्थ- तुलसीदास जी का कहना है कि अगर आप अपने चारों तरफ़ खुशहाली चाहते हैं तो अपने वाणी पर हमेशा काबू रखें। गलत शब्द बोलने की जगह राम नाम जपते रहिए इससे आप भी खुश रहेंगे और आपके घरवाले भी खुश रहेंगे।
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दोहा-
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भांग ते तुलसी तुलसीदास।
अर्थ- तुलसीदास जी का कहना है राम नाम लेने से मन हमेशा साफ़ रहता है। इसलिए कहा जाता है कि किसी भी काम को करने से पहले राम का नाम लीजिए। यही कारण है कि तुलसीदास जी भी स्वयं हर कार्य को शुरु करने से पहले श्रीराम का नाम लेते थे और अपने आप को तुलसी के पौधे जैसा पवित्र मानने लगे थें।

दोहा-
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।
अर्थ- इस दोहे का मतलब सुंदर रूप देखकर न सिर्फ मूर्ख बल्कि चतुर इंसान भी धोखा खा जाते हैं। इसलिए हमेशा कपटी लोगो से जितना हो सके बचें। जैसे मोर दिखने में बहुत सुंदर लगते हैं लेकिन उनका भोजन सांप है।
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