Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jun, 2024 07:41 AM
शक्ति का चमत्कार
एक बार जापान के प्रसिद्ध सेनापति नोबुनागा को युद्ध में पराजय मिली। उसके सैनिकों के मन में भी
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शक्ति का चमत्कार
एक बार जापान के प्रसिद्ध सेनापति नोबुनागा को युद्ध में पराजय मिली। उसके सैनिकों के मन में भी निराशा भर गई। शत्रु सेना बहुत बड़ी थी। उससे दोबारा टकराने का साहस किसी में नहीं बचा था। नोबुनागा अपने सैनिकों को एक मंदिर में ले गया। उसने कहा, ‘‘मैं एक सिक्के को 3 बार उछालूंगा। यदि सिक्का अधिक बार चित्त पड़ा तो जीत हमारी होगी और हम फिर से शत्रु का मुकाबला करेंगे।’’
तीनों बार सिक्का चित्त पड़ा। सैनिक खुशी से चिल्ला पड़े, ‘‘जीत! जीत!’’
उनमें एक नई संकल्प शक्ति का संचार हुआ। उन्होंने पूरे जोश से जीते हुए शत्रु पर आक्रमण किया और विजयी हुए। नोबुनागा ने हर्ष से उन्मत्त सैनिकों की प्रशंसा करते हुए बताया कि उछाले गए सिक्के के दोनों ओर पर चित्त का निशान था। यह था संकल्प- शक्ति का चमत्कार।
‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ में बहस
जीवन और मृत्यु में बहस छिड़ गई कि किसकी महत्ता ज्यादा है ? जीवन बोला, ‘‘मेरी ही महत्ता ज्यादा है, तुम भला दूसरों को नष्ट करने के अतिरिक्त और क्या करती हो?’’
मृत्यु ने हंस कर कहा, ‘‘चलो एक प्रयोग करके देखते हैं।’’
प्रयोग के रूप में मृत्यु ने जीवन-हरण करना बंद कर दिया तो लोग अमर होने लगे। अमर होते ही जीवन का मूल्य लोगों की दृष्टि से जाने लगा और वे जीवन का दुरुपयोग करने लगे।
अब जीवन को अपनी भूल का भान हुआ। दोनों ने जान लिया कि दोनों ही एक-दूसरे के सहायक और पूरक हैं और दोनों का महत्व साथ-साथ रहने में ही है, एक-दूसरे का विरोध करने में नहीं।