Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Dec, 2024 08:25 AM
महाराज शतद्रुम बड़े पराक्रमी और नीतिकुशल सम्राट थे। उनके विशाल साम्राज्य और ऐश्वर्य की चर्चा चारों ओर थी। लेकिन सभी की देह कभी न कभी काल का ग्रास बनती है। शतद्रुम की बारी भी आ गई। राजवैद्य
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Inspirational Story- महाराज शतद्रुम बड़े पराक्रमी और नीतिकुशल सम्राट थे। उनके विशाल साम्राज्य और ऐश्वर्य की चर्चा चारों ओर थी। लेकिन सभी की देह कभी न कभी काल का ग्रास बनती है। शतद्रुम की बारी भी आ गई। राजवैद्य के प्रयास भी उन्हें बचा न सके। परन्तु मरते-मरते भी जीवन लालसा छूटी नहीं।
उन्होंने मंत्रियों एवं महारानी से कहा, ‘‘उनका शरीर जलाया न जाए, बल्कि उसे सुरक्षित रखने का यत्न किया जाए। किसी ऐसे तेजस्वी मुनि की खोज की जाए जो मृत शरीर में पुन: प्राणों का संचार कर दे।’’
मंत्री एवं महारानी को संयोग से ऐसे ऋषि मिल भी गए। सारी बातें सुनकर महर्षि ने कहा, ‘‘पहले हमें यह पता करना पड़ेगा कि मृत्यु के बाद महाराज की जीवात्मा कहां, किस योनि में है ?’’
महर्षि ने पता लगाया कि शतद्रुम राजोद्यान में एक कीड़े की योनि में हैं। सेनापति उस कीड़े को मारने पहुंचे तो वह भय से इधर-उधर छिप रहा था। यह देख महर्षि हंसे और बोले, ‘‘यही मृत्यु भय है, जो एक कीड़े में उतना ही, जितना कि शतद्रुम में था।’’
महाराज जितना पूर्व शरीर में सुखी थे, उतने ही अभी भी हैं। जब वह स्वयं इस कीड़े के शरीर को नहीं छोड़ना चाहते तो उन्हें व्यर्थ परेशान न करो। सभी ने महर्षि की बात मान ली।