Edited By Prachi Sharma,Updated: 20 Sep, 2024 01:47 PM
महात्मा अबुल हसन नूरी बगदाद के मशहूर विद्वान और सूफी संत थे। वह ईश्वर में इतने लीन रहते थे कि उन पर बाहरी कष्ट का प्रभाव भी कम होता
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Inspirational Story: महात्मा अबुल हसन नूरी बगदाद के मशहूर विद्वान और सूफी संत थे। वह ईश्वर में इतने लीन रहते थे कि उन पर बाहरी कष्ट का प्रभाव भी कम होता था। एक दिन बगदाद के एक अमीर के घर में आग लग गई। अमीर भागता हुआ बाहर आया और चीखने लगा, “मेरे दो गुलाम इस आग में फंसे हैं। जो इन्हें निकाल लाएगा उसे मैं एक हजार दीनार ईनाम में दूंगा।”
ईनाम अधिक होने के बाद भी आग की भयंकर लपटों में कोई भी जाने की हिम्मत नहीं कर सका। उधर से महात्मा नूरी निकल रहे थे। वह आग से घिरे उस घर में चले गए और पिछले कमरों में फंसे दोनों गुलामों को सहारा देकर धीरे-धीरे आग से बाहर निकाल लाए।
जब अमीर ने अपने गुलामों को ठीक-ठाक देखा तो वह महात्मा नूरी के पास आया और धन्यवाद देते हुए बोला, “आपने मेरे गुलामों को बचाया। हमने जो धन उनको बचाने के लिए रखा था, वह आपका हुआ।” और उसने एक हजार दीनार की झोली उनकी तरफ बढ़ा दी।
महात्मा नूरी ने मुस्कुराकर कहा कि यह अपने पास ही रखें। मैंने ईनाम के लिए यह नहीं किया और अगर किया होता तो शायद इन्हें बचा भी नहीं पाता। मेरा कर्त्तव्य है, मुश्किल में फंसे इंसान को बचाना।
अगर मेरे मन में आपके ईनाम का लोभ होता तो उसी आग में मैं भी खत्म हो जाता। आग भी उन पर नरम हो जाती है जो मानवता के रास्ते पर नि:स्वार्थ चलते हैं। मैं तो बस अपना काम कर रहा था। इसमें ईनाम कहां से आ गया ? हां, यह रकम इन गुलामों को आधी-आधी दे दो ताकि तुम पर भी आग का असर कम हो।
महात्मा बोले, “मानवता, प्रेम और भाईचारे के सामने ऐ अमीर, तमाम आग नरम हो जाती है।”