Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 Sep, 2024 10:45 AM
एक समय की बात है। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह अपनी राजधानी लाहौर में थे कि उन्हें उनके गुप्तचरों ने खबर दी कि कबीली लुटेरों का एक दल सरहद के सूबे के पेशावर शहर में घुस
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एक समय की बात है। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह अपनी राजधानी लाहौर में थे कि उन्हें उनके गुप्तचरों ने खबर दी कि कबीली लुटेरों का एक दल सरहद के सूबे के पेशावर शहर में घुस गया है और उसे लूट रहा है।
महाराजा रणजीत सिंह ने तुरन्त इलाके के सेनापति को बुलाया और पूछा, “आपने पेशावर नगर की सुरक्षा क्यों नहीं की ?”
सेनापति ने कुछ संकोच से कहा, “महाराज, हमारे पास शहर में केवल 150 सैनिक थे और कबीली लुटेरों की संख्या डेढ़ हजार थी, फलत: हम उनका मुकाबला नहीं कर सके। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने साथ केवल डेढ़ सौ सिपाही लिए और वह पेशावर में लुटेरों की भीड़ पर टूट पड़े। उन सैनिकों की वीरता और तलवारों के हमले के सम्मुख कबीली लुटेरे टिक नहीं सके, वे भागते ही नजर आए।
लौटकर महाराज ने सेनापति से पूछा, “मेरे साथ कितने सिपाही थे और कबीली कितने सिपाही थे ?”
सेनापति ने कहा, “महाराज, आपके साथ केवल डेढ़ सौ सिपाही थे और कबीली डेढ़ हजार थे।”
महाराज ने कहा, “वे इतने पर भी हार गए, क्या कारण ?”
सेनापति ने जवाब दिया, “आपकी बहादुरी और रौबदाब के कारण।” महाराज ने कहा, “नहीं, मेरे अकेले की बहादुरी से नहीं, सबकी मिली जुली बहादुरी के कारण।
इसी एकता के कारण हमारा एक-एक वीर दुश्मनों पर भारी पड़ गया। इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि हम सबको हमेशा एकता से रहना चाहिए।”