Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Nov, 2024 10:46 AM
एक राजा की चार रानियां थीं। एक दिन प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। रानियों ने कहा कि समय आने पर वे मांग लेंगी। कुछ समय बाद राजा ने एक अपराधी को मृत्युदंड दिया। बड़ी रानी ने सोचा कि इस मरणासन्न व्यक्ति को एक दिन का जीवनदान देकर उसे...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक राजा की चार रानियां थीं। एक दिन प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। रानियों ने कहा कि समय आने पर वे मांग लेंगी। कुछ समय बाद राजा ने एक अपराधी को मृत्युदंड दिया। बड़ी रानी ने सोचा कि इस मरणासन्न व्यक्ति को एक दिन का जीवनदान देकर उसे उत्तम पकवान खिलाकर खुश करना चाहिए। उन्होंने राजा से प्रार्थना की, ‘‘मेरे वरदान के रूप में आप इस अपराधी को एक दिन का जीवनदान दें और उसका आतिथ्य मुझे करने दें।’’ रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। रानी ने अपराधी को स्वादिष्ट भोजन कराया। किन्तु अपराधी ने उस राजसी खाने में कोई खास रुचि नहीं ली।
दूसरी रानी ने भी वही वरदान मांगा और अपराधी को राजसी वस्त्र दिए। पर अपराधी असंतुष्ट रहा।
तीसरे दिन तीसरी रानी ने फिर वही वरदान मांगकर उसके लिए नृत्य-संगीत की व्यवस्था की। किन्तु अपराधी का मन तनिक भी नहीं लगा।
चौथे दिन सबसे छोटी रानी ने राजा से प्रार्थना की, ‘‘मैं वरदान में चाहती हूं कि अपराधी को क्षमादान दिया जाए।’’ रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। उस रानी ने अपराधी को सूखी रोटियां खिलाईं। उसने बड़े आनंद से खाईं।
राजा ने अपराधी से इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘राजन, मुझे तो छोटी रानी की रूखी-सूखी रोटियां सबसे स्वादिष्ट लगीं क्योंकि तब मुझे मृत्यु का भय नहीं था। उससे पहले मौत के भय के कारण मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।’’