Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Jan, 2025 09:29 AM
एक बार दो राज्यों के बीच युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। दोनों राज्यों के शासक एक ही संत के भक्त थे। वे अपनी-अपनी विजय के लिए उनका आशीर्वाद मांगने अलग-अलग समय पर उनके पास पहुंचे।
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Inspirational Story: एक बार दो राज्यों के बीच युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। दोनों राज्यों के शासक एक ही संत के भक्त थे। वे अपनी-अपनी विजय के लिए उनका आशीर्वाद मांगने अलग-अलग समय पर उनके पास पहुंचे। पहले शासक को आशीर्वाद देते हुए संत बोले, “तुम्हारी विजय निश्चित है।”
दूसरे शासक से उन्होंने कहा, “तुम्हारी विजय संदिग्ध है।”
दूसरा शासक संत की बात सुनकर चला आया किंतु उसने हार नहीं मानी और अपने सेनापति से कहा, “हमें जोर-शोर से तैयारी करनी होगी।”
इधर, पहले शासक की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न था। उसने विजय निश्चित जान अपना सारा ध्यान आमोद-प्रमोद में लगा दिया। निश्चित दिन युद्ध आरंभ हो गया। जिस शासक को विजय का आशीर्वाद था, उसे तो कोई चिंता ही न थी। उसके सैनिकों ने युद्ध का अभ्यास तक नहीं किया था।
दूसरी ओर जिस शासक की विजय संदिग्ध बताई गई थी उसने व उसके सैनिकों ने दिन-रात एक कर युद्ध की अनेक बारीकियां जान ली थीं।
उन्होंने युद्ध में इन्हीं बारीकियों का प्रयोग किया और कुछ ही देर बाद पहले शासक की सेना को परास्त कर दिया।
अपनी हार पर पहला शासक बौखला गया और संत के पास जाकर बोला, “महाराज, आपकी वाणी में कोई शक्ति नहीं है। आप गलत भविष्यवाणी करते हैं।”
यह सुनकर संत बोले, “पुत्र, इतना बौखलाने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारी विजय निश्चित थी, किंतु उसके लिए मेहनत और पुरुषार्थ भी तो जरूरी था। भाग्य भी हमेशा कर्मरत और पुरुषार्थी मनुष्यों का ही साथ देता है। तभी तो वह शासक जीत गया जिसकी पराजय निश्चित लग रही थी।’’
यह सुनकर पराजित शासक लज्जित हो गया और संत से क्षमा मांगकर लौट गया।