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Inspirational Story: यह है परमात्मा को प्राप्त करने का रास्ता...

Edited By Sarita Thapa,Updated: 22 Jan, 2025 02:11 PM

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Inspirational Story: हमारे अंदर का द्वेष और घृणा हमारे दु:ख का मुख्य कारण है। यह तब विकसित होता है जब लोग अपने शब्दों और कार्यों से हमें दु:ख पहुंचाते हैं या जब दूसरे हमारी मदद या उपकार का आभार नहीं मानते।

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Inspirational Story: हमारे अंदर का द्वेष और घृणा हमारे दु:ख का मुख्य कारण है। यह तब विकसित होता है जब लोग अपने शब्दों और कार्यों से हमें दु:ख पहुंचाते हैं या जब दूसरे हमारी मदद या उपकार का आभार नहीं मानते। घृणा का मूल कारण हमारी यह धारणा है कि हमारे साथ दूसरे लोग भी कर्ता हैं, जिससे अहंकार पैदा होता है।

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वास्तव में हमारे गुण सभी कार्यों केअसली कर्त्ता हैं। अपने को कर्ता मान लेने से द्वेष और घृणा का कर्मबंधन पैदा होता है, क्योंकि हम जीवन भर के लिए ‘दूसरों’ से बंध जाते हैं। इस पर काबू पाने के लिए, श्रीकृष्ण ने हमें कर्म करते समय द्वेष या घृणा छोड़ने की सलाह दी थी (5.3)।

श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘तुम जो कुछ भी करते हो, जो कुछ भी खाते हो, वह मुझे अर्पण करके करो। (9.27)। इंद्रियों और इंद्रिय वस्तुओं की परस्पर प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न दु:ख और सुख की धु्रवताओं के बारे में हमें जागरूक होना चाहिए (2.14)। श्रीकृष्ण इन सुखों, दुखों को सहन करने की सलाह देते हैं क्योंकि ये अनित्य हैं। यह सांख्य योग का दृष्टिकोण है।

खाने का उदाहरण देते हुए श्रीकृष्ण सुख-दु:ख की धु्रवताओं को उनको समर्पित करने के लिए कहते हैं। यह भक्ति योग का दृष्टिकोण है। ये दोनों मार्ग धु्रवों को पार करके द्वंद्वातीत बनने में मदद करते हैं।

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श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम जो कुछ भी करते हैं, उसे उन्हें समर्पित करते हुए करें। इसका अर्थ यह है कि कर्म करते समय हमें अपने कत्र्तापन के भाव को भगवान को समर्पित करना है। यानी परमात्मा को अपना अहंकार समर्पित कर देना है। श्रीकृष्ण आश्वासन देते हैं कि इसे आचरण में लाने से हम कर्मबंधन से मुक्त हो जाएंगे (9.28)।

इस अवस्था में दुनिया की कोई भी चीज हमें प्रभावित नहीं कर सकती क्योंकि हम परम स्वतंत्रता यानी मोक्ष प्राप्त करते हैं। आध्यात्मिक यात्रा में हमारी प्रगति को मापना एक कठिन काम है क्योंकि न तो हमारा और न दूसरों का बाहरी व्यवहार इसका कोई सूचक है।

बाहरी दुनिया की घटनाओं के कारण हमारे अंदर उत्पन्न होने वाली घृणा और शिकायतें ही कर्मबंधन हैं। इस कर्मबंधन की मात्रा आध्यात्मिक मार्ग में हमारी प्रगति को दर्शाती है।

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