Edited By Sarita Thapa,Updated: 07 Mar, 2025 03:05 PM
Inspirational Story: एक राजा किसी युद्ध में विजयी होकर अपने नगर लौट रहा था। उसके मंत्री और सैनिक उसके साथ थे। रास्ते में पेड़ के नीचे उसे बौद्ध भिक्षु बैठा दिखा।
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Inspirational Story: एक राजा किसी युद्ध में विजयी होकर अपने नगर लौट रहा था। उसके मंत्री और सैनिक उसके साथ थे। रास्ते में पेड़ के नीचे उसे बौद्ध भिक्षु बैठा दिखा। राजा घोड़े से उतरा और भिक्षुक के पास जाकर उनके चरणों पर अपना सिर रख दिया। मंत्री और सैनिक ये दृश्य देख रहे थे। एक मंत्री को अपने राजा का भिक्षुक के चरणों पर शीश झुकाना अच्छा नहीं लगा।
महल आने के बाद उसने राजा से कहा, “महाराज, आप पराक्रमी राजा हैं। आपका शीश तो गर्व से तना रहना चाहिए। आपने एक भिक्षुक के चरणों पर शीश झुका दिया। मुझे यह उचित नहीं जान पड़ा।”
राजा ने अगले दिन उस मंत्री को बुलवाया और एक थैला देकर कहा, “इस थैले में चार चीजें रखी हैं। बाजार जाओ और इन्हें बेचकर आओ। ध्यान रहे, बाजार पहुंचने से पहले इस थैले में झांककर मत देखना।”
मंत्री थैला लेकर बाजार चला गया। बाजार में जब बेचने के लिए उसने चारों चीजें निकाली, तो चकित रह गया। थैले में एक मुर्गी का सिर, एक मछली का सिर, एक बकरी का सिर और एक इंसान का सिर था।
राजा की आज्ञा का पालन उसे करना ही था। उसने मुर्गी का सिर, मछली का सिर और बकरी का सिर तो बेच दिया, किंतु इंसान का सिर खरीदने को कोई तैयार नहीं हुआ। वह उसे बिना बेचे ही राजा के पास लौट आया। राजा को उसने सारी बात बताई।
राजा ने मंत्री से पूछा, ‘‘क्या मेरी मृत्यु के बाद तुम मेरा सिर अपने पास रखोगे?” मंत्री ने न कहते हुए सिर झुका दिया। राजा ने कहा, “जिस सिर को कोई बिना मोल भी लेना नहीं चाहता, उसे मैंने किसी भिक्षुक के चरणों में झुका दिया, तो क्या हो गया?
विनम्रता से झुके मेरे सिर को भिक्षुक का आशीर्वाद तो मिला। स्मरण रखो, मिथ्या अभिमान का कोई अर्थ नहीं है।” मंत्री राजा की नेक सलाह का कायल हो गया।