Edited By Sarita Thapa,Updated: 24 Apr, 2025 03:41 PM
Inspirational Story: संत सरयूदास का जन्म गुजरात के एक गांव में हुआ था। सरयूदास जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत थोड़ी थी। वह अपने मामा के ही घर पर रहकर उनका व्यापार संभालते थे।
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Inspirational Story: संत सरयूदास का जन्म गुजरात के एक गांव में हुआ था। सरयूदास जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत थोड़ी थी। वह अपने मामा के ही घर पर रहकर उनका व्यापार संभालते थे। कुछ बड़े हुए तो सरयूदास का विवाह हो गया पर उनकी पत्नी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकी। एक बार की बात है, सरयूदास रेलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। कहीं खड़े होने तक की जगह नहीं थी। किसी तरह से संत जी को गाड़ी में बैठने की जगह मिल गई। गाड़ी में संत जी के पास ही एक मजबूत कद-काठी का व्यक्ति बैठा था। वह बार-बार संत की ओर पैर बढ़ाकर उन्हें ठोकर मार देता था।
संत सरयूदास ने बड़े दयाभाव से कहा, “भाई संकोच मत करना। लगता है तुम्हारे पैर में कहीं पीड़ा है जिसे दिखाने को तुम बार-बार मेरी ओर बढ़ाते हो, फिर वापस खींच लेते हो। मुझे सेवा का मौका दो, मैं भी तुम्हारा अपना ही हूं।”
यह कहते हुए संत ने व्यक्ति का पैर उठाकर अपनी गोद में रख लिया और उसे सहलाने लगे। संत के ऐसा करने पर यात्री शर्मिंदा हुआ और क्षमा-याचना करते हुए कहने लगा, “महाराज, मेरा अपराध क्षमा करें। आप महापुरुष हैं, यह मुझे अब अहसास हुआ है।”
सहनशीलता सफलता की सीढ़ी है जिसे हमें अपने अंदर विकसित करना चाहिए। व्यक्ति का सहनशील होना ही उसे इस दुनिया में आगे ले जाता है। हृदय में संतोष है तो इंसान कुटिया में भी सुखी रहता है और असंतोष है तो ऐसा जीव महलों में भी सुखी नहीं रहता।