1100 साल पुरानी है जगन्नाथ मंदिर की रसोई, 500 रसोईए बनाते हैं लाखों लोगो का खाना

Edited By Jyoti,Updated: 01 Jul, 2022 02:50 PM

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1 जुलाई दिन शुक्रवार को पुरी में अध्यात्मिक रथ यात्रा प्रारंभ हो रही है। जैसे कि हम ने आपको इससे पहले भी इससे जुड़ी जानकारी दी है जिसमें हमने आपके बताया जगन्नाथ यात्रा का महत्व। साथ ही साथ बताया कि इस रथ यात्रा का आरंभ

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1 जुलाई दिन शुक्रवार को पुरी में अध्यात्मिक रथ यात्रा प्रारंभ हो रही है। जैसे कि हम ने आपको इससे पहले भी इससे जुड़ी जानकारी दी है जिसमें हमने आपके बताया जगन्नाथ यात्रा का महत्व। साथ ही साथ बताया कि इस रथ यात्रा का आरंभ कैसे होते है व इस रथ यात्रा में जाने वाले तीन विशाल रथ होते हैं जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा जी विराजमान होते हैं। इसी कड़ी में आज हम रथ यात्रा के अवसर पर आपको अवगत करवाने जा रहे हैं पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर की रसोई से जुड़े ऐसे रहस्यों से जिन्हें जानने वाला हर व्यक्ति दंग रह जाए। तो चलिए बिना देर किए जानतें हैं पुरी के जगन्नाथ मंदिर की 1100 साल पुरानी रसोई से जुड़े दिलचस्प रहस्य- 
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बताया जाता है प्रत्येक वर्ष पुरी में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा में लाखों की तादाद मेंल लोग शामिल होते हैं, जिसके मद्देनजर मंदिर की रसोई में लाखों लोगों की गिनती में ही प्रसाद बनाया जाता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि जगन्नाथ मंदिर में स्थित ये रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में से एक है, जहां नयिमति रूप से 1 लाख लोगो के लिए खानन बनाया जाता है। तो वहीं दिन में 06 बार भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है। इस दौरान जगन्नाथ जी के समक्ष कुल 56 तरह के पकवान सजाए जाता है। भोग के बाद यही महाप्रसाद मंदिर परिसर में मौजूद आनंद बाजार में बिकता है। 

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ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई 11वीं शताब्दी में राजा इंद्रवर्मा के समय शुरू हुई थी। तब पुरानी रसोई मंदिर के पीछे दक्षिण में थी। जगह की कमी के कारण, मौजूदा रसोई 1682 से 1713 ई के बीच उस समय के राजा दिव्य सिंहदेव ने बनवाई, जिसके बाद से इसी रसोई में भोग बनाया जा रहा है। 
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कई परिवार पीढ़ियों से यहां भोग बनाने का काम कर रहे हैं। वहीं, कुछ लोग महाप्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाते हैं, क्योंकि इस रसोई में बनने वाले शुद्ध और सात्विक भोग के लिए हर दिन नया बर्तन इस्तेमाल किया जाता है। 

इसके अलावा क्या है इस मंदिर की खासियत, आइए जानते हैं- 
बताया जाता है ये रसोई लगभग 8000 स्कवायर फीट में है, जिसमें 24 चूल्हे हैं। मंदिर की रसोई दक्षिण-पूर्व दिशा में है। इसके अलावा रसोई में गंगा-यमुना नाम के दो कुएं हैं। जिसका पानी भोग को बनाने में इस्तेमाल होता है।

दुनिया की सबसे बड़ी इस रसोई में 800 लोगों की देखरेख में भोग बनता है, जिसमें 50 रसोईए हैं व 300 सहयोगी हैं जो भोग बनाने में अपना पूरा-पूरा सहयोग देते हैं।

यहां मिट्टी के बर्तनों में भोग बनाया जाता है। इन मिट्टी के बर्तनों कुल 700 हांडियां शामिल हैं, जिसमें से 4 बड़ी हांडियां, 6 मीडियम हांडियां, 5 छोटी हांडियां, 3 विभिन्न प्रकार के बाऊल तथा 3 तरह की प्लेट आदि शामिल हैं। मान्यताओं के अनुसार भोग बनने के बाद सभी हांडियों को तोड़ दिया जाता है और अगले दिन फिर नए बर्तनो में भोग बनाया जाता है।
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बताया जाता है कि इस रसोई में 15 मिनट में 17000 हजार लोगों के लिए खाना बनाया जाता है। रसोई में लगभग 175 चूल्हों पर चावल बनाए जाते हैं। इन्हें बनाने के लिए 10-12 लोगों के खाने जितने चावल एक बड़ी मिट्टी की हांडी में भरे जाते हैं। 9 बर्तन एक ही साथ एक ही चूल्हे पर चढ़ाए जाते हैं। करीबन 15 मिनट में ये सभी चावल तैयार हो जाते हैं। इस तरह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 15 मिनट में इस रसोई में एक साख 17,500 लोगों के खाने जितने चावल बनते हैं। इस गणित के हिसाब से दिनभर की बात करें इस रसोई में लगभग 7 लाख लोगों के खाने जितना खानवा तैयार हो सकता है।

आयुर्वेद के मुताबिक भगवान के भोग में होने वाले 6 रसों का खासा ध्यान रखा जाता है।  बनाए खाने में मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़ना और कसैला स्वाद होता है। इनमें तीखे और कड़वे स्वा वाले भोजन का नैवेद्य भगवान को नहीं लगाया जाता है।
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जगन्नाथ मंदिस की रसोई में रोज़ाना 56 भोग बनते हैं, जिसमें कम से कम 10 तरह की मिठाईयां शामिल होती हैं। सब्जियों में मूली, देशी-आलू, केला, बैंगन, सफेद और लाल कद्दू, कन्दमूल, परवलत, बेर और अरवी का इस्तेमाल होता है। दालों की बात करें इसमें केवल मूंग, अरहर, उड़द और चने की दाल बनाई जाती है। जगन्नाथ भगवान को लगाए जाने वाला ये भोग पूरी तरह से सात्विक होता है, इसमें लौंग, आलू, टमाटर, लहसुन, प्याज तथा फूल गोभी का  इस्तेमाल नहीं किया जाता।


 

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