कौन थे ऋषि वात्स्यायन, संन्यासी होते हुए क्यों की इन्होंने इस ग्रंथ की रचना?

Edited By Jyoti,Updated: 20 Jan, 2020 01:09 PM

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धार्मिक ग्रंथों में ऐसी बहुत से ऋषियों का वर्णन पढ़ने सुनने को मिलता है जिन्होंने प्राचीन समय में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिसके चलते इन्हीं काफी प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई।

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धार्मिक ग्रंथों में ऐसी बहुत से ऋषियों का वर्णन पढ़ने सुनने को मिलता है जिन्होंने प्राचीन समय में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिसके चलते इन्हीं काफी प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई। ऐसे ही एक ऋषि थे जिनका नाम था वात्स्यायन ऋषि। इन्हें एक ऐसा ग्रंथ रचा जिसका आज भी बहुत से लोग नाम लेने से भी कतराते हैं, जी हां आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं कामसूत्र ग्रंथ की। अब आप सोच रहे होंगे इन्होंने इस ग्रंथ की रचना की तो इसमें खास बात क्या है, तो वहीं कुछ लोगों के मन में ये सवाल भी ज़रूर आया होगा कि इन्की मानसिक वृति शायद सबसे अलग होगी इसीलिए इन्होंने एक ऐसे ग्रंथ की रचना की जिसमें कामुक क्रियाओं का बहुत अच्छे से उल्लेख किया है।
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परंतु आपका ऐसा सोचना गलत है क्योंकि असल में ऋषि वात्स्यायन एक संन्यासी थे। आपने बिल्कुल सही सुना है। मगर आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि एक संन्यासी होते हुए उन्होंने कामसूत्र जैसे ग्रंथ की रचना कैसे की, जिसमें उन्होंने कामुकता के विषय को बड़ी सजहता लिख दिया।

तो चलिए जानते हैं इनसे जुड़ी ऐसी बातें, जिसके द्वारा आपको अपने इस प्रश्न का उत्तर मिल सकता है।

कहा जाता है है वात्स्यायन ऋषि भारत वर्ष के महान ऋषियो में से एक थे जिनका जन्म गुप्त वंश के समय का था। हांलाकि इतिहासकारों में वात्स्यायन के नाम और उनके जीवनकाल को लेकर काफी मतभेद देखने को मिलता है। कुछ के अनुसार नीतिसार के रचयिता कामंदक, जो कि चाणक्य के प्रधान शिष्य थे, वे ही वात्स्यायन ऋषि थे। तो वहीं सुबन्धु द्वारा रचित वासवदत्ता में कामसूत्र के रचनाकार का नाम 'मल्लनाग' बताया गया है। इसका अर्थ इनका एक नाम मल्लनाग भी था।
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ब्रह्मचारी थे कामसूत्र के रचनाकार वात्स्यायन
महान रचनाकार वात्स्यायन ब्रह्मचारी तथा एक संन्यासी थे। इसके बावजूद भी उन्हें कामुक विषय की गहन समझ थी। ऐसा कहा जाता है कि वात्स्यायन ने कामसूत्र, वेश्यालयों में जाकर देखी गई मुद्राओं को नगरवधुओं और वेश्याओं के अनुभवों को लिखा। कामुकता विषय को उन्होंने कई नए और खूबसूरत आयाम दिए हैं। बताया जाता है बनारस में लंबा वक्त बिताने वाले वात्स्यायन ऋषि बहुत ज्ञानी, दार्शनिक और चारों वेदों के ज्ञाता थे।

इनका मानना था कि कामुकता के विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। वो कहते थे कि इनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए है। इसी उद्देश्य से ही उन्होंने इस किताब की रचना की। उन्होंने अपने किताब के माध्यम से इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश की कि लोग इस संबंध में बेहतर जानकारी हासिल कर सकें। बता दें वास्तव में अगर कामसूत्र को सकारात्मक रूप से देखा जाए तो यह बेहद ही आनंददायक विषयों का संग्रह ग्रंथ है।
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