Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Jun, 2024 07:30 AM
दर्शन सिंह अपने कमरे में लगे पलंग में हथौड़ी से कीलें गाड़ रहे थे। ‘‘पापा आप क्या कर रहे हो? यह अब ठीक नहीं है। देखो न यह पलंग कितना पुराना है? यह पुराने जमाने का है। इसे ठीक न करो।’’
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Interesting Story- दर्शन सिंह अपने कमरे में लगे पलंग में हथौड़ी से कीलें गाड़ रहे थे। ‘‘पापा आप क्या कर रहे हो? यह अब ठीक नहीं है। देखो न यह पलंग कितना पुराना है? यह पुराने जमाने का है। इसे ठीक न करो।’’ सोहन ने अपने पापा को समझाने की कोशिश की।
दर्शन सिंह बोला, ‘‘बेटा देखो, यह मेरे दोस्त कमल सिंह ने दिया था। वह मेरा जिगरी दोस्त था। सबसे अलग था वह, जो मेरी खुशी ही नहीं, मेरे गम में भी मेरा साथी था। जब भी हमारे परिवार पर कोई संकट आया, वह सबसे पहले मदद के लिए पहुंचा। बिना कहे भी वह मेरे मन की बात समझ जाता था।’’
‘‘जब हमारे दिन अच्छे नहीं चल रहे थे और नया पलंग लेने की हममें हिम्मत नहीं थी तो उसने अपने हाथों से इसे तैयार किया था।’’
‘‘उसकी यह निशानी ही तो शेष है मेरे पास। वह अब इस दुनिया में नहीं है। इसी पलंग को देखकर कमल सिंह को याद कर लेता हूं।’’ दर्शन सिंह ने बेटे को समझाते हुए कहा।
सोहन बोला, ‘‘पापा बहुत हुआ, अब बस, हद हो गई। आज शाम को नए पलंग आ रहे हैं आपके लिए।’’
शाम को नए पलंग आ गए। पुराना पलंग बरामदे में रख दिया सोहन ने। दर्शन सिंह यह सब देख रहा था। वह कुछ भी नहीं कह सका। उस रात दर्शन सिंह को नए पलंग पर नींद नहीं आई। उसकी पत्नी का बहुत पहले देहांत हो गया था। वह अपने मन की बात किसे बतलाए। सोहन उसकी इकलौती संतान थी। उसकी शादी हो चुकी थी। उसकी पत्नी रीना और वह आधुनिक विचारधारा समेटे हुए थे। उन्हें दर्शन सिंह की भावना से कोई लेना-देना नहीं था। वे दोनों अपनी इच्छाओं के ही गुलाम थे। उनके मन में जो आता वही करते।
उस दिन लोहड़ी का त्यौहार था। दर्शन सिंह किसी काम से शहर गया था। शाम को जब वह घर आया तो देख कर हैरान रह गया कि पलंग छोटे टुकड़ों में सिमट चुका था और ये टुकड़े एक ढेर में तबदील हो गए थे।
इसे देख कर उसे गुस्सा आया लेकिन अब वह क्या कर सकता था। देखते ही देखते उस ढेर में आग लग चुकी थी। सोहन, रीना और पड़ोसी उस आग में रेवड़ी, मूंगफली, गचक व चिड़वड़े की आहूति डाल रहे थे। वह थोड़ी दूर से यह सब देखता रहा। उसकी आंखों में आए आंसू उसी तरह से उसके दिल में समा चुके थे। वह वापस अपने कमरे में चला गया। उसने महसूस किया कि उसके दोस्त की अंतिम निशानी नहीं जल रही थी, यह उसकी अर्थी जल रही थी। इस अर्थी को उसके बेटे ने आग लगाई। वह जीते हुए भी मर गया। उसकी भावनाओं का कत्ल हो गया।