मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने क्यों खो दिया था धैर्य, जानिए राम-सेतु से जुड़ी ये दिलचस्प गाथा!

Edited By Jyoti,Updated: 11 Apr, 2020 06:18 PM

interesting story of making ram setu bridge in hindi

रामायण, ऐसा ग्रंथ है जिसके बारे में लगभग हर हिंदू जानता है। इसमें वर्णित प्रसंग न केवल श्री राम जी की जीविनी पर प्रकाश डालते हैं बल्कि मानव को जीवन जीने की सही कला सिखाते हैं, आज्ञाकारी होना सिखाते हैं,

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
रामायण, ऐसा ग्रंथ है जिसके बारे में लगभग हर हिंदू जानता है। इसमें वर्णित प्रसंग न केवल श्री राम जी की जीविनी पर प्रकाश डालते हैं बल्कि मानव को जीवन जीने की सही कला सिखाते हैं, आज्ञाकारी होना सिखाते हैं, माता-पिता की आज्ञा को अपने धर्म व कर्तव्य समझना चाहिए जैसे कई गुण श्री राम के चरित्र से पाए जाते हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति में अपने धैर्य नहीं खोना चाहिए ये गुण भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम से ही सीखने को मिलता है।
PunjabKesari, Ramayan, रामायण, श्री राम, श्री राम गाथा, Shri Ram, Ram Setu, Ram Setu Bridge, राम सेतु, राम सेतु पुल, Dharmik Katha in hindi, Dharmik Katha, Religious Story in hindi
इसके लिए रामायण मे उल्लेखित प्रसंग व श्री राम के जन्म से लेकर उन्हें जीवन के अंत काल तक से जुड़ी हर बात पता चलती है। परंतु आज भी इनमें ऐसी कई बातें छिपी हैं, जो मानव जीवन तक नहीं पहुंची। इन्हीं में से एक है श्री राम की वानर सेना द्वारा बनाए जाने वाले राम सेतु पुल से जुड़ी वो बात, जिसे विस्तारपूर्वक शायद ही कोई जानता होगा।

यकीनन आप लोग ये जानते होंगे कि लंका तक जाने के लिए श्री राम की सेना ने राम-सेतु का पुल बनाया था। पर कैसे व इसका पूरा श्रेय किसका था इस बारे में लोग नहीं जानते होंगे।

चलिए हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी सबसे दिलचस्प व अनसुनी कथा, जिसमें बताया गया है कि किस तरह श्री राम में एक समय में श्री राम ने भी चाहे कुछ देर के लिए ही सही अपना धैर्य खो दिया था।

इतना तो आप सब जानते हैं कि राजा दशरथ के पुत्र श्री राम ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी किसी भी प्रकार की मर्यादा का उल्लघंन नहीं किया। समय-समय पर उन्हें अपने जीवन में इस बात की उदाहरण पेश की है। जिसमें से एक उदाहरण संबंधित है सागर पार कर श्री लंका जाने से। आइए विस्तारपूर्वक जानें इससे से जुड़ी कथा-
PunjabKesari, Ramayan, रामायण, श्री राम, श्री राम गाथा, Shri Ram, Ram Setu, Ram Setu Bridge, राम सेतु, राम सेतु पुल, Dharmik Katha in hindi, Dharmik Katha, Religious Story in hindi
पैराणिक ग्रंथों मे किए उल्लेख के अनुसार प्रभु श्री राम न सागर पार जाने का साधन ने होने पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने सभी साथियों को सभा में एकत्रित किया। जिसमें उन्होंने लंका पति रावण के भाई विभिषण जो अब तक उनकी शरण में आ चुके थे, को उनकी वानर सेना को मायावी शक्तियां सिखाने का अनुग्रह किया। ताकि वानर सेना उन शक्तियों की मदद से आकाश मार्ग द्वारा लंका पहुंच सके।

मगर इस पर श्री राम को उत्तर देते हुए विभिषण ने कहा कि, “हे प्रभु आसुरी माया राक्षसों के लिए तो सुलभ हैं परंतु वानर तथा मानव इन्हें सरलता से प्राप्त नहीं कर सकते।”

विभिषण की ये बात सुनकर श्री राम ने उन्हें कोई अन्य उपाये देने को कहा, जिससे वो शीघ्र से शीघेर लंका पहुंच सके और माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ा पाएं।

जिसके बाद विभिषण ने श्री राम को स्वयं सागर देव से रास्ता मांगने के लिए कहा। साथ ही उन्हें ये भी बताया कि असल में इस सागर का निर्माण उन्हीं की यानि श्री राम के पूर्वज जो इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के नाम से विख्यात थे, ने ही किया था।

चूंकि लक्ष्मण जी स्वभाव से थोड़ा उग्र थे, इसलिए विभिषण द्वारा दी गई ये सलाह उन्हें पसंद नहीं आई जिस कारण उन्होंने इसका विरोध किया, न केवल विरोध किया बल्कि उन्होंने श्री राम को अपने बाण से संपूर्ण सागर को सूखा देने के लिए कहा।
PunjabKesari, Ramayan, रामायण, श्री राम, श्री राम गाथा, Shri Ram, Ram Setu, Ram Setu Bridge, राम सेतु, राम सेतु पुल, Dharmik Katha in hindi, Dharmik Katha, Religious Story in hindi
मगर मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने अपने भ्राता लक्ष्मण को समझाया और कुशा के आसन पर बैठकर अन्न जल त्यागकर सागर देव की आराधना प्रारंभ कर दी। इस घटना के बारे में जब त्रिजटा द्वारा माता सीता को पता चला तो उन्होंने ने भी उपवास रखा और भगवान शंकर से अपने पति की कमाना से अपने स्वामी के विजय होने की कामना की।

परंतु तीन दिन तक जब सागर देव उनके समक्ष प्रकट नहीं हुए तो श्री राम के धैर्य का बांध टूट गया और उन्होंने लक्ष्मण द्वारा दी गई सलाह को स्वीकार करने का मन बना लिया और धनुष मेम ब्रह्मास्त्र साध लिया।

श्री राम का ये क्रोधित रूप देखकर सागर देव अत्यंत भयभीत हो गए और उनके समक्ष प्रकट हो गए ऍर  उनके क्षमा याचना करने लगे।

शरणागत वच्छल प्रभु श्री राम ने उसी क्षण उन्हें क्षमा कर दिया और उनको अपने शरण में ले लिया तथा उन्हें सारी बात बताई कि उन्हें सागर पार करने में उनकी सहायता चाहिए।

मगर सागर देव ने ऐसा कर पाने में अपनी अस्मर्थता बताई। परंतु उन्होंने श्री राम को कहा कि आप ही की सेना में ऐसे 2 वानर हैं जो इस सागर को पार करवाने में आपके सबसे बड़े सहायक बन सकते हैं। जिसके बाद श्री राम ने उत्सुक्ता वश उनके बारे में पूछा सागर देव ने नल और नील का नाम लिया। उन्होंने श्री राम को बताया कि वे विश्वकर्मा जी के पुत्र हैं, जिनके द्वारा फेंके हुए पत्थरों से सेतु का निर्माण किया जा सकता है। कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में इन दोनों को ये श्राप था कि उनके द्वारा फेंके गई कोई भी वस्तु जल में डूबेगी नहीं। जो इस वक्त आपके लिए एक वरदान का काम कर सकती है।

जिसके बाद श्री राम ने नल नील से इस बार में पूछा तो उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता की आज्ञा थी कि वे अपने जीवन काल में कभी किसी को भी या किसी के आगे भी अपने गुणों का व्यख्यान नहीं कर सकते।

जिसके बाद प्रभु श्री ने सेतु निर्माण के लिए रामवेश्वरम में मिट्टी का शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की और सेतु निर्माण का आदेश दिया।

Related Story

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!