Edited By Jyoti,Updated: 18 May, 2022 02:08 PM
प्यार का मुकम्मल होना भगवान पर छोड़ दो तो बेहतर है क्योंकि जोड़ियां तो वो ऊपर से ही बनाकर भेजते हैं। बस आपको साथी ढ़ूढ़ना होता है और फिर भगवान के सामने उसके साथ 7 जन्मों-जन्म तक का साथ मांगना होता है।
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प्यार का मुकम्मल होना भगवान पर छोड़ दो तो बेहतर है क्योंकि जोड़ियां तो वो ऊपर से ही बनाकर भेजते हैं। बस आपको साथी ढ़ूढ़ना होता है और फिर भगवान के सामने उसके साथ 7 जन्मों-जन्म तक का साथ मांगना होता है। आज हम आपको गणपति बप्पा के एक ऐसे दरबार लेकर जाने वाले हैं। जहां वे इश्किया गजानन के नाम से प्रसिद्ध हैं। अगर आप भी अपनी अधूरी लव स्टोरी को पूरा करना चाहते हैं तो ये जानकारी आपके बहुत काम आने वाली है।
दरअसल राजस्थान के जोधपुर में भगवान गणेश का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर स्थित है जहां जो भी प्रेमी जोड़ा अपने प्यार की दास्तान को पूरा करने की मनोकामना लेकर जाता है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता। बता दें कि इस मंदिर को इश्किया गजानन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यहां की प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार शादी की चाह रखने वाले जो भी युवा इस मंदिर में आकर मन्नत मांगते हैं तो उनका रिश्ता जल्द ही तय हो जाता है। तो वहीं जो कपल्स अपने प्यार को पाने की फरियाद लेकर आते हैं, उनकी भी मुराद पूरी हो जाती है। यही कारण है कि यहां आने वाले अधिकांश जोड़े अपने प्यार की फरियाद लेकर पहुंचते हैं ताकि विघ्नहर्ता उनके राह में आने वाले हर विघ्न को दूर कर दें और उनकी शादी हो जाए।
बताया जाता है यहां पहले इश्किया गजानन मंदिर को पहले गुरु गणपति के नाम से जाना जाता था। शादी से पहले हर जोड़ा यहां इनसे मुलाकात करने आते थे। धीरे-धीरे यहां प्रेमी जोड़े भी आने लगे। गणपति बप्पा द्वारा प्रेमी जोड़ों की मुरादें पूरी होने के कारण इस मंदिर को इश्किया गजानन के नाम से प्रसिद्ध प्राप्त हो गई। मंदिर के पुजारियों आदि के मुताबिक यहां प्रत्येक बुधवार को बप्पा के दर्शन के लिए प्रेमी जोड़ों की भीड़ उमड़ती है।
इसके अलावा आपको जयपुर के एक गणेश मंदिर के बूारे में बताते हैं। कहा जाता है गढ़ गणेश के नाम से प्रसिद्ध ये मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां बिना सूंड वाले गणेश जी विराजमान है। दरअसल यहां गणेशजी का बालरूप विद्यमान है। रियासतकालीन में ये मंदिर गढ़ की शैली में बना हुआ है, इसलिए इसका नाम गढ़ गणेश मंदिर पड़ा। गणेश जी के आशीर्वाद से ही जयपुर की नींव रखी गई थी। यहां गणेशजी के दो विग्रह हैं। जिनमें पहला विग्रह आंकडे की जड़ का और दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है। नाहरगढ़ की पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेश जी के बाल्य स्वरूप वाली इस प्रतिमा की विधिवत स्थापना करवाई थी। मंदिर परिसर में पाषाण के बने दो मूषक स्थापित हैं, जिनके कान में भक्त अपनी इच्छाएं बताते हैं और मूषक उनकी इच्छाओं को बाल गणेश तक पहुंचाते हैं।