Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Mar, 2024 11:02 AM
ईश्वरचंद विद्यासागर की मां हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहती थीं। वे इस बात की परवाह नहीं करती थीं कि घर में पैसे हैं या
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Ishwar Chandra Vidyasagar Story: ईश्वरचंद विद्यासागर की मां हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहती थीं। वे इस बात की परवाह नहीं करती थीं कि घर में पैसे हैं या नहीं ?
तंगी के दिनों में भी वह अपनी चिंता छोड़कर दूसरों का ज्यादा याल रखती थीं। जब विद्यासागर जी अच्छे पद पर नियुक्त हो गए, तब घर की आर्थिक स्थिति सुधरी लेकिन उनके रहन-सहन में कोई बदलाव नहीं आया और उन्होंने अपनी सादगी नहीं छोड़ी।
एक दिन विद्यासागर जी के एक मित्र उनके घर आए। विद्यासागर जी की मां को प्रणाम किया और वह उनके सहज-सरल स्वभाव को देखकर दंग रह गया।
उन्होंने पूछा, ‘‘माताजी यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।’’
माताजी सहज मुस्कान के साथ बोलीं, ‘‘पूछो बेटा, क्या जानना चाहते हो ?’’
मित्र बोला, ‘‘माताजी अब तो आपके बेटे बड़े अधिकारी बन गए हैं। उनका समाज में काफी नाम और सम्मान है। ऐसे में यदि उनकी मां मामूली चूड़ियां पहनें तो यह थोड़ा अटपटा लगता है। अब तो आपको सोने के गहने पहनने चाहिएं।’’
यह सुन कर विद्यासागर की मां जोर से हंस पड़ीं और बोलीं, पुत्र, विद्यासागर की मां के हाथ की शोभा न तो यह चूड़ियां हैं और न ही सोने-चांदी के गहने। इन हाथों की शोभा तो सदा गरीबों की सेवा करते रहने से आती है।
ऐसा जवाब सुनकर उनके मित्र उनके सामने नतमस्तक हो गए।
उन्होंने कहा, ‘‘माताजी आज मुझे विद्यासागर के सद्गुणी और परोपकारी स्वभाव के रहस्य का पता चल गया है। जिनकी माता सद्गगुणों की खान हों, उनका बेटा सदा ही अच्छे गुणों से भरपूर होगा। आप धन्य हैं, जिन्होंने स्वयं के साथ ही अपने पुत्र को भी लायक बनाया है।’’
तभी विद्यासागर जी आ गए और अपने मित्र से बोले, ‘‘मैं स्वयं चाहता हूं कि मेरे जैसी मां, हर भारतवासी के घर में हो, जो खुद के साथ-साथ अपनी संतान को भी सही रास्ता दिखाए।’’