Jagannath Puri Tourism: आस्था और पर्यटन का अद्भुत संगम है पुरी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Dec, 2022 08:03 AM

jagannath puri

देश के पूर्वी छोर पर बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा पुरी आस्था और पर्यटन का संगम है, जो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। भुवनेश्वर पूरे भारत से वायु मार्ग, रेल मार्ग और

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Jagannath Puri Tourism 2022: देश के पूर्वी छोर पर बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा पुरी आस्था और पर्यटन का संगम है, जो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। भुवनेश्वर पूरे भारत से वायु मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जगन्नाथ पुरी के नाम से मशहूर इस समुद्र तटीय शहर के मौसम को समुद्र बहुत प्रभावित करता है। मानसून के समय यहां भारी बारिश होती है। गर्मियों में बेहद गर्मी पड़ती है इसलिए अक्तूबर से मार्च तक जगन्नाथ पुरी जाने का सबसे अच्छा समय है। इसके अलावा विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का समय भी पुरी जाने के लिए उपयुक्त है। पुरी को देश के चार हिंद धामों में से एक माना जाता है।

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Puri jagannath temple tourism:
लम्बे समुद्री तट पर बिखरी सुनहरी रेत, सुहानी हवा, जगमगाता साफ पानी पुरी आने वाले हर पर्यटक को अपनी तरफ आकर्षित करता है। सागर के किनारे पर विभिन्न कलाकारों द्वारा बनाई गई रेत की मूर्तियां दांतों तले उंगलियां दबाने पर मजबूर कर देती हैं। पुरी के अनूठे बीच पर सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का अद्भुत दृश्य देखकर लोग मंत्रमुग्ध रह जाते हैं।

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Puri jagannath temple idols story कलिंग शैली में बना मंदिर
जगन्नाथ मंदिर 214 फुट ऊंचा, 20 फुट ऊंची दीवारों से घिरा और चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला है। यह मंदिर कलिंग शैली में बना है। इसके शिखर पर बना सुदर्शन चक्र (नील चक्र) अष्ट धातुओं से बनाया गया है। मंदिर की चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुए हैं।
महाप्रभु जगन्नाथ को कलयुग का भगवान भी कहते हैं। पुरी में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ रहते हैं। इस मंदिर को लेकर भी कई किंवदंतियां और रहस्य प्रचलित हैं। हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ति को बदला जाता है। उस समय समूचे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है। उस दौरान कोई भी मंदिर में नहीं जा सकता।

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मंदिर के भीतर घना अंधेरा रहता है और तीनों पुजारियों की आंखों पर पट्टी बंधी होती है। उनके हाथ में दस्ताने होते हैं। वे पुरानी मूर्ति से ‘ब्रह्म पदार्थ’ निकालते हैं और नई मूर्ति में डाल देते हैं। यह ब्रह्म पदार्थ क्या है, इसके बारे में आज तक किसी को कुछ पता नहीं, किसी ने देखा भी नहीं हैं। हजारों वर्षों से इसे एक से दूसरी मूर्ति में प्रतिष्ठापित किया जाता रहा है। आज तक कोई भी पुजारी यह नहीं बता पाया कि महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आखिर ऐसा क्या है ? आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में पुरी के राजा खुद सोने का झाड़ू लगाने आते हैं।

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What is famous in Puri Jagannath Temple मंदिर के अंदर नहीं सुनाई देती लहरों की आवाज
भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती लेकिन हैरत की बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देगी। 

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Jagannath puri darshan उल्टी दिशा में लहराता झंडा
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। मंदिर के शीर्ष पर लगा झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता है। दिन में किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित सुदर्शन चक्र हर दिशा से देखने पर आपकी तरफ ही नजर आता है। 

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Jagannath Puri mega kitchen सबसे बड़ी रसोई
मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इस रसोई को देखने के लिए 10 रुपए का टिकट लगता है, जिसमें लगभग 500 रसोइए और उनके 300 सहयोगी भगवान को चढ़ाने वाले 56 (छप्पन) भोग को तैयार करने के लिए काम करते हैं। 
यहां की मान्यता के अनुसार इस रसोई में बनने वाला भगवान के 56 भोग का निर्माण माता लक्ष्मी की देख-रेख में ही होता है। यह भोग हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार बिना प्याज और लहसुन से तैयार किया जाता है। 

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रसोई के पास स्थित गंगा व यमुना नाम के कुओं के जल से ही इन 56 भोग का निर्माण किया जाता है। रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। 

मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

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