Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jun, 2023 10:31 AM
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भगवान श्री हरिविष्णु ने जीवों पर कृपा करते हुए जगन्नाथ रूप में अवतार लिया जो उनका सबसे दयालु स्वरूप है। जब भगवान जगन्नाथ आषाढ़ मास
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Jagannath Rath Yatra 2023: भगवान श्री हरिविष्णु ने जीवों पर कृपा करते हुए जगन्नाथ रूप में अवतार लिया जो उनका सबसे दयालु स्वरूप है। जब भगवान जगन्नाथ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मंदिर से बाहर निकलते हैं, तो विशाल रथ पर अपने भाई बलदेव एवं बहन सुभद्रा के संग विराजमान होते हैं। तब जो भी जीव उस रथयात्रा के दर्शन करता है, भगवान के स्वागातार्थ उठ खड़ा होता है और भगवान के लिए फल-फूल अर्पित करता है, भगवान उसे तीनों लोकों की सम्पदा एवं खुशियां प्रदान कर देते हैं। ऐसा हमारे ग्रंथों में वर्णित है।
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क्यों अर्द्ध निर्मित है भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा
कहते हैं कि राजा इन्द्रद्युम्न, जो सपरिवार नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहते थे, को समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। राजा के उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय करते ही वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा जी स्वयं प्रस्तुत हो गए। उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊंगा, उसमें मूर्ति के पूर्णरूपेण बन जाने तक कोई न आए। राजा ने इसे मान लिया।
आज जिस जगह पर श्रीजगन्नाथ जी का मन्दिर है, उसी के पास एक घर के अंदर वह मूर्ति निर्माण में जुट गए। राजा के परिवारजनों को यह ज्ञात न था कि वह वृद्ध बढ़ई कौन है। कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए-पिए वह बढ़ई कैसे काम कर सकेगा। अब तक वह जीवित भी होगा या मर गया होगा। महारानी ने महाराजा को अपनी सहज शंका से अवगत करवाया। महाराजा के द्वार खुलवाने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला लेकिन उसके द्वारा अर्द्धनिर्मित श्रीजगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियां वहां मिलीं। महाराजा और महारानी दुखी हो उठे लेकिन उसी क्षण दोनों ने आकाशवाणी सुनी- ‘व्यर्थ दुखी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं, मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।’
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आज भी वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियां पुरुषोत्तम पुरी की रथयात्रा और मन्दिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। रथयात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्री कृष्ण व बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा के नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है। जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा में एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है और भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है।
इतिहास
इस त्यौहार के दौरान, लोग हर साल मूर्तियों को स्नान कराने और उनकी पूजा करने के बाद भगवान श्री कृष्ण और उनके दो भाई-बहनों की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं सदी से हुई, जिसका विस्तृत विवरण पवित्र ग्रंथों, जैसे पद्मपुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में पाया जा सकता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन, भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी (अब मौसी मां मंदिर) के घर से होते हुए गुंडिचा मंदिर गए थे।
हालांकि, भगवान जगन्नाथ वहां अकेले नहीं, बल्कि अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलदेव के साथ गए थे। यह दिन अब हर साल जगन्नाथ रथयात्रा के साथ मनाया जाता है, जहां भगवान की मूर्ति अपने दो भाई-बहनों के साथ रथ पर विराजमान होती है। भक्तों द्वारा भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाने के बजाय, भगवान स्वयं श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के लिए अपने गर्भगृह से बाहर आते हैं।
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लुधियाना में भगवान जगन्नाथ रथयात्रा
इस्कॉन एवं भगवान जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव कमेटी 1996 से इस्कॉन के संस्थापक आचार्य ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी श्रीलप्रभुपाद के जन्म शताब्दी के अवसर से भगवान जगन्नाथ जी की विशाल रथयात्रा का आयोजन करवाती आ रही है। इस वर्ष यह रथयात्रा 20 जून, 2023 को श्री दुर्गा माता मंदिर, जगराओं पुल, लुधियाना से सायं 4 बजे शुरू होगी। इस्कॉन के वर्तमान श्रद्धेय गोपाल कृष्ण महाराज के मार्गदर्शन में एवं इस्कॉन कुरुक्षेत्र अध्यक्ष साक्षी गोपालदास, इस्कॉन लुधियाना अध्यक्ष नरोत्तम नंद के नेतृत्व में इस रथयात्रा का आयोजन हो रहा है।
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