Jagannath Rath Yatra: भक्त एवं भगवान का मंगल मिलन है जगन्नाथ रथयात्रा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jun, 2023 11:08 AM

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भारतीय जनमानस की भक्ति के प्राणाधार श्री कृष्ण का सबसे दयालु स्वरूप भगवान जगन्नाथ है। भगवान जगन्नाथ अर्थात भक्त के नाथ, जगत के नाथ दयालु भगवान। इस स्वरूप में विशाल

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Jagannath Rath Yatra 2023: भारतीय जनमानस की भक्ति के प्राणाधार श्री कृष्ण का सबसे दयालु स्वरूप भगवान जगन्नाथ है। भगवान जगन्नाथ अर्थात भक्त के नाथ, जगत के नाथ दयालु भगवान। इस स्वरूप में विशाल नेत्रों के साथ बांहें पसारे भगवान जगन्नाथ भक्त को अपने आलिंगन में लेने के लिए उसे पुकार रहे हैं। भगवान जगन्नाथ रथयात्राओं के आयोजन का वास्तविक अर्थ भक्त एवं भगवान का परस्पर साक्षात्कार और वास्तविक मिलन है, जिसे देश-विदेश में अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) पूर्ण भक्तिभाव से निभा रहा है।

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जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होने की पौराणिक कथा के अनुसार लगभग 5000 वर्ष पूर्व द्वापर युग में लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण जब वृंदावन त्याग कर द्वारिका नगरी में अपनी पत्नियों संग निवास कर रहे थे, तभी एक बार पूर्ण सूर्य ग्रहण का विरल अवसर आया। इस अवसर पर सभी यदुवंशियों ने कुरुक्षेत्र स्थित समन्त पंचक नामक पवित्र तीर्थ पर एकत्रित होने तथा वहां स्नान, उपवास, दान आदि करके अपने पापों का प्रायश्चित करने का निश्चय किया।

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निश्चय के अनुरूप समस्त द्वारिका वासियों ने श्री कृष्ण के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। वियोगिनी राधा रानी एवं वृंदावन वासियों को जब श्री कृष्ण के कुरुक्षेत्र आने का पता चला तो उन्होंने नन्द बाबा के नेतृत्व में श्री कृष्ण के दर्शनार्थ कुरुक्षेत्र जाने का निश्चिय किया।

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इतने वर्षों के पश्चात भक्त शिरोमणि राधा रानी तथा गोपियों ने श्री कृष्ण को देखकर परम आनंद अनुभव किया। किन्तु कुरुक्षेत्र का वातावरण तथा श्री कृष्ण की राजसी वेशभूषा राधा रानी के प्रेम में अवरोधक थी। वह बीते समय की भांति श्री कृष्ण के साथ वृंदावन की कुंज गलियों में विहार तथा मिलन के लिए लालायित थीं। 

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इसी लालसा के वशीभूत राधा जी ने श्री कृष्ण को वृंदावन आने का निमंत्रण दिया। परम कृपालु भगवान श्री कृष्ण ने निमंत्रण स्वीकार किया तो वृंदावन वासी प्रसन्नता से झूम उठे और रथ पर सवार होकर वृंदावन के लिए तैयार हो गए। जिस रथ पर श्री कृष्ण तथा उनके बड़े भाई बलराम तथा मध्य में बहन सुभद्रा आरूढ़ थीं, उस रथ के घोड़े ब्रजवासियों ने खोल दिए तथा घोड़ों के स्थान पर स्वयं जुत गए। वृंदावन वासियों ने परम भगवान श्री कृष्ण को तब प्रथम बार भगवान जगन्नाथ (जगत के नाथ) का नाम दिया। आकाश जय जगन्नाथ, जय बलदेव, जय सुभद्रा के उदघोषों से गूंज उठा। भक्तों का अभूतपूर्व प्रेम देखकर परम भगवान श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘जब तुम मेरे घोड़े (दास) बन ही गए हो तो अब तुम मुझे जहां चाहे ले चलो।’’ 

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इस प्रकार सब ब्रजवासी मिलकर भगवान श्री कृष्ण के रथ को स्वयं खींचकर तीनों भाई-बहन की जय जयकार करते हुए वृंदावन धाम तक ले गए। इस सारी लीला को जगन्नाथ रथयात्रा के नाम से जाना जाने लगा। 

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लेकिन श्री कृष्ण प्रेम एवं भक्ति की यह लीला उसी दिन समाप्त नहीं हो गई बल्कि श्री जगन्नाथ रथयात्रा उसी कृष्ण प्रेम के साथ जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में निकलनी शुरू हुई जहां लाखों भक्तों ने रथयात्राओं में भाग लेना शुरू किया।

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श्री कृष्ण भक्तों को रथयात्राओं के साथ जोड़े रखने के लिए 20वीं शताब्दी में महान संत एवं इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने प्रयास शुरू किए। इसी कड़ी में उन्होंने 9 जुलाई 1967 को अमेरिका में सान फ्रांसिस्को की धरती पर जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया। तब से लेकर आज तक सान फ्रांसिस्को में यह दिन राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है।

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उधर भारत में 1996 में श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी के अवसर पर इस्कॉन कुरुक्षेत्र अध्यक्ष साक्षी गोपाल दास जी के अथक प्रयासों से लुधियाना में प्रथम बार जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया गया तथा पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से यहां जगन्नाथ रथयात्रा का वार्षिक आयोजन कृष्ण भक्ति की पराकाष्ठा को बढ़ा रहा है। इस रथयात्रा में सम्मिलित होकर जगन्नाथ जी की कृपा लेने के लिए हर वर्ष देश-विदेश से अनेकों कृष्ण भक्त लुधियाना आते हैं। रथयात्रा के पावन अवसर पर हीरे-रत्न एवं स्वर्ण जड़ित झाड़ुओं से रथयात्रा मार्ग को स्वच्छ किया जाता है। रंग-बिरंगी रंगोलियों से सजाकर उसमें कृष्ण भक्ति के रंग संजोए जाते हैं। 

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पुष्प द्वार, तोरण द्वार, वंदनवार, दीपमाला, शहनाई वादन, फलों के द्वार आदि से रथयात्रा मार्ग को सजाया जाता है। रथ के आगे अनेकों वैष्णव संकीर्तन मंडल भगवान जगन्नाथ जी के संकीर्तन में लीन रहते हैं। पूरा रथयात्रा मार्ग 108 तीर्थों के जल एवं गौमाता के गोबर से शुद्ध किया जाता है। जगन्नाथ रथ के समक्ष भक्तों  द्वारा आरतियां करके जगन्नाथ जी को रिझाया जाता है। अनेकों स्वागती मंच भगवान जगन्नाथ जी की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए रहते हैं। भगवान को प्रिय छप्पन भोग, विभिन्न व्यंजन, माखन-मिश्री भोग, भगवान के आगे अर्पित किए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक झांकियां एवं प्रादेशिक बैंड राष्ट्रीय एकता की झलक दिखाती हैं। इसमें लाखों भक्त जुटकर श्री जगन्नाथ रथ को स्पर्श कर एवं रथ के रस्से को खींचकर भगवान जगन्नाथ को अपने मन रूपी वृंदावन में लेकर जाएंगे। 

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