Edited By Jyoti,Updated: 12 Jun, 2022 12:07 PM
हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का अधिक महत्व है। ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि हर व्यक्ति को मृत्यु से पहले इन चार धाम की यात्रा जरूर करनी चाहिए। बता दें हमारे समाज में 2 तरह की चार धाम यात्रा
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हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का अधिक महत्व है। ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि हर व्यक्ति को मृत्यु से पहले इन चार धाम की यात्रा जरूर करनी चाहिए। बता दें हमारे समाज में 2 तरह की चार धाम यात्रा विख्यात है। एक जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री शामिल हैं। ये चारों धाम उत्तराखंड में स्थित है। लेकिन बात करें अन्य चार धाम की तो कहा जाता है जो चार धाम के दर्शन कर इंसान मुक्ति पाता है, वो यही। ये चार धाम भारत के चार कोनों में स्थित है। ये चार धाम हैं, बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी। बताया जाता है ये चारो धाम न केवल भक्तिमय है बल्कि देखने में भी अति सुंदर है साथ ही साथ अपनी अपनी खास विशेषता के चलते देश के साथ विदेशों में प्रख्यात है। आज हम आपको इन्ही चार धाम में से एक के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जहां श्री कृष्ण अपने भाई बहन के साथ विराजमान हैं।
जी हां, आप सही समझ रहे हैं हम बात करने जा रहे हैं भगवान जगन्नाथ के धाम की, जो उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये स्थान भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। चूंकि भगवान जगन्नाथ का ये धाम उड़ीसा के पुरी में स्थित है इसलिए इसे जगन्नाथ पुरी के नाम से जाना जाता है। बता दें यहां न केवल भारत देश से बल्कि अन्य देशों-विदेशों से हजारों की संख्या में भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं, और ये संख्या लाखों में तब बदलती है जब यहां रथ यात्रा निकलती है। इसमें लोग दूर-दूर से शामिल होने के लिए पहुंचते हैं तथा भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को पकड़कर व खिंचकर पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण का ही एक नाम है जो दो शब्दों के जोड़ से बना है। जगन व नाथ, जिसका अर्थ है जग का स्वामी। उड़ीसा राज्य के समुद्री तट के नजदीक बसे इस जगन्नाथ धाम के मुख्य देवता स्वयं भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा हैं, जिनकी प्रत्येक वर्ष के आषाढ़ मास में भव्य रथों पर शोभा यात्रा निकाली जाती है। बता दें रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई व बहन के साथ मंदिर से निकलकर पूरे नगर का भ्रमण करते हैं। बात करें पुरी की धरती को तो पुराणों में इसे धरती का स्वर्ग कहा गया है। इसके अलावा इसे श्री क्षेत्र, श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि आदि के नाम से भी जाना जाता है। पुरी में स्थित इस जगन्नाथ मंदिर की सबसे खास बात ये ही कि मंदिर के ऊपर का लहराता हुआ ध्वज प्राचीन समय से ही हवा के विपरीत लहराता है, इससे भी अनोखी बात तो ये है कि प्रतिदिन इस मंदिर के पुजारी उस ध्वज को बदलते हैं।
इसके अलावा बात करें मंदिर में स्थापित मूर्तियों की तो बताया जाता है मंदिर में स्थित तीनों मूर्तियां प्रत्येक 12 साल में बदली जाती हैं। यानि पुरानी मूर्तियों की जगह नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। मूर्ति बदलने की इस प्रक्रिया से जुड़ा भी एक दिलचस्प किस्सा है। कहा जाता है कि जिस वक्त मूर्तियां बदली जाती हैं तब पूरे शहर में बिजली काट दी जाती है और मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मंदिर के बाहर सीआरपीएफ की सुरक्षा तैनात कर दी जाती है और मंदिर में किसी की भी एंट्री पर पाबंदी होती है। इस दौरान केवल उन पुजारियों को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है जिन्हें मूर्तियां बदलनी होती हैं।
यहां जानें मंदिर में स्थित तीनों मूर्तियों से जुड़ा रोचक किस्सा-
धार्मिक कथाओं के अनुसार जगन्नाथ मंदिर में स्थित भगवान जगन्नाथ की नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे प्राप्त हुई थी। बताया जाता है मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी थी। तब उसने कड़ी तपस्या करके भगवान विष्णु के दर्शन पाए। कथाओं के मुताबिक विष्णु जी ने उसे दर्शन देकर कहा कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाए और उसे एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण करवाए। राजा ने विष्णु जी की आज्ञानुसार ठीक वैसा ही किया। उसके बाद राजा को विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किंतु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परंतु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अन्दर नहीं आएगा।
लेकिन राजा को जब कई दिनों तक अंदर से किसी प्रकार की कोई आवाज़ न आई तो उन्होंने उत्सुकता वश कमरे में झांक लिया जिसके बाद वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे।जिसके बाद राजा बेहज उदास हो गए तब मूर्तिकार ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि ये सब शयद स्वयं भगवान की आज्ञा से ही हुआ है और इसलिए अब ये मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होनी चाहिए। जिसके बाद तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर परिसर में स्थापित कर दी गईं। बता दें वर्तमान जो नई मूर्तियों बनाई जाती है वो इसी के अनुसार निर्मित की जाती हैं।