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Jageshwar Dham: उत्तराखंड के जागेश्वर धाम में स्वर्ग जैसा होता है अनुभव, भगवान शिव की तपस्थली के लिए है प्रसिद्ध

Edited By Prachi Sharma,Updated: 09 Jun, 2024 09:00 AM

jageshwar dham

मनुष्य और उसका विकास इस भुलावे में अवश्य है कि घर में ए.सी. लगाकर गर्मी से बच जाएंगे, खाना रसोई गैस से पका लेंगे, आधुनिक गाड़ियों के लिए चमचमाती सड़कें बनवा

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मनुष्य और उसका विकास इस भुलावे में अवश्य है कि घर में ए.सी. लगाकर गर्मी से बच जाएंगे, खाना रसोई गैस से पका लेंगे, आधुनिक गाड़ियों के लिए चमचमाती सड़कें बनवा लेंगे लेकिन इस वास्तविकता को समझकर भी नकार रहा है कि आक्सीजन और धरती की सेहत के लिए तो पेड़-पौधों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। मनुष्य अपने भोगवादी विकास के लिए प्रकृति के हर कोने पर पहुंचकर विजय हासिल करना चाहता है, जिसके कारण वह अपने विनाश का रास्ता स्वयं ही बना रहा है।

ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है- उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर से 1000 वर्ष पुराने जागेश्वर धाम मंदिर का। इसके आसपास से गुजरने वाली 6-7 कि.मी. की घुमावदार सड़क पर देवदार का घना जंगल है। हजारों देशी-विदेशी श्रद्धालु यहां आकर दर्शन करते हैं। यहां से गुजरने वाली सड़क इतनी भी संकरी नहीं है कि गाड़ियों को जाने में कोई दिक्कत हो। यह जरूर है कि आधुनिक किस्म की गाडिय़ों को आधे घंटे का सफर 5-10 मिनट में ही पूरा करना है और इसके लिए आसपास के लगभग 1000 देवदार के पेड़ों पर निशान लगाकर काटने की योजना बनाई गई है।

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जिसने भी यहां देवदार के पेड़ों को काटने का सुझाव दिया होगा वह भूल गया कि यहां जागेश्वर धाम में उगने वाली देवदार का अर्थ ‘देव वृक्ष’ से है। यहां से ‘जटा गंगा’ नाम की छोटी सी जलधारा भी बहती है, जिसका अस्तित्व इसी हरियाली पर टिका हुआ है।

कोई भी श्रद्धालु जब यहां आता है तो वह यहां के इन शानदार दुर्लभ पेड़ों के बीच में स्वर्ग जैसा अनुभव करता है। ‘मानस खंड’ में ऋषि वेद व्यास इस जंगल के बारे में बताते हैं कि यहां आकर शिवजी ने अपने योगी रूप को प्राप्त किया है। इस अद्वितीय जंगल के बीच में जागेश्वर धाम का मंदिर है जो सिद्ध पुरुषों, विद्वानों, ऋषियों और देवताओं की पूजा स्थली है।

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इस भव्य मंदिर का शिल्प बहुत ही आकर्षक है। इस स्थान पर सवा सौ मंदिरों का एक छोटा सा परिसर बनाया गया है, जिसमें शिव के अलग-अलग रूप में दर्शन होते हैं। यहां पर शिव का ऐसा मंदिर भी है, जहां पर पूजा करने से मनोकामना की पूॢत होती है लेकिन वर्तमान सदी का सबसे बड़ा सपना है कि लोग तेज रफ्तार के साथ इस दिव्य स्वरूप देवभूमि में पहुंचें।

नीति निर्माताओं का विचार है कि हर स्थान पर सड़क इतनी चौड़ी हो कि टैंक भी चलाया जा सके, इसलिए देवदार के पेड़ों पर आरियां चलाने में उन्हें कोई हिचक नहीं है। यह भी नहीं समझ पा रहे हैं, कि हिमालय क्षेत्र में देवदार विलुप्ति की कगार पर हैं। यदि कहीं देवदार बचा भी है तो वह साल में 6 से 8 इंच तक की वृद्धि कर पाता है।

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स्थानीय लोग इस बात को भली-भांति समझते हैं, इसलिए उन्हें जब पता चला कि जागेश्वर धाम के आसपास देवदार के हजार से अधिक पेड़ों को काटने के लिए निशान लगा दिए गए हैं तो पेड़ों को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर अनेकों लोगों ने आक्रोश जाहिर किया।


स्थानीय लोगों को लगा कि हमारी पहाड़ की महिलाओं का जीवन तो जंगल से ही जुड़ा हुआ है। तीर्थ क्षेत्रों का महत्व भी जंगल और नदियों के आकर्षण पर टिका है। गौरा देवी सहित उत्तराखंड की हजारों महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए ‘चिपको आंदोलन’ चलाया था और इसके बाद महिलाओं ने राखी बांध कर लाखों पेड़ों को बचाने का अभियान चला रखा है। इसी को ध्यान में रख कर पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चंदन नयाल ने दर्जनों महिलाओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और शिवरात्रि (8 मार्च) के दिन जागेश्वर धाम का दर्शन करके देवदार के पेड़ों पर राखी बांधकर बचाने का संकल्प लिया था, जिन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं।  

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यद्यपि मीडिया के माध्यम से पेड़ों पर छपान करने के बावजूद वन विभाग ने कहा है कि भविष्य में इन पेड़ों को नहीं काटा जाएगा लेकिन उनको यह कहने का दबाव तो स्थानीय लोगों ने ही बनाया है। शासन-प्रशासन ने अपने कदम, घोषणा के तौर पर वापस लेने की बात तो कही है लेकिन लोगों की सक्रियता जब समाप्त हो जाएगी तो इन पेड़ों को बचाना मुश्किल होगा क्योंकि महाविनाश को न्योता देने के लिए इस तरह का विकास आ ही रहा है।

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