Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jan, 2022 11:29 AM
जयपुर की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं पर स्थित जयगढ़ किला स्थापत्य तथा अपनी अद्भुत बनावट के लिए तो विख्यात है ही
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Jaigarh Fort Jaipur Rajasthan: जयपुर की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं पर स्थित जयगढ़ किला स्थापत्य तथा अपनी अद्भुत बनावट के लिए तो विख्यात है ही, परंतु आपातकाल के दौरान इसमें गढ़े खजाने की खुदाई के समय भी यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था। हालांकि, लाखों रुपए व्यय करके खुदाई कार्यक्रम पूरे एक माह के करीब चलता रहा परंतु वह गढ़ा खजाना पाने में सरकार पूरी तरह विफल रही, मात्र एक सोने की मोहर तथा दो बंदूकें ही प्राप्त कर सकी। ‘खोदा पहाड़ और निकली चूहिया’ वाली कहावत इस मामले में पूरी तरह चरितार्थ हुई।
Jaigarh fort history: उल्लेखनीय है कि पहले जयगढ़ सम्पूर्ण रूप से बंद था परंतु 27 जुलाई, 1983 से इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था। तब से इस किले को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। सामरिक महत्व की दृष्टि से किले की वास्तु शिल्प कला बड़े ही अद्भुत कौशल का परिचय देती है।
Who built jaigarh fort: इस बात के पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं परंतु जनश्रुति यह है कि मान सिंह प्रथम ने अपनी बाईस छोटी रियासतों से जो पूंजी-सम्पत्ति इकट्ठी की थी, उसे सुरक्षित रखने के लिए इसी स्थान को चुना था।
यह वह समय था जब मान सिंह काबुल से लौट रहे थे तो उन्हें समाचार मिला कि उनके पुत्र जगत सिंह को मरवा दिया गया है तो उन्होंने अकबर से अपनी संपत्ति बचाने के लिए इस जगह सारा धन छिपा दिया था। इस कार्य में उसने नांगल गांव के सांधता मीणा की मदद ली और उसे ही देखरेख के लिए नियुक्त भी किया।
हालांकि जगत सिंह की मृत्यु में अकबर का हाथ था या नहीं, इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते क्योंकि जगत सिंह बुद्धि में कुशाग्र होने के कारण अकबर दरबार के नवरत्नों में से एक थे।
Jaigarh fort treasure: छुपाए धन के बारे में यह भी श्रुति है कि बाद में जय सिंह ने इस धन का उपयोग जयपुर को बसाने में किया था। जिस जगह धन गाड़ा गया था वह चील का टीला नाम से जाना जाता था और तब तक किले का निर्माण भी नहीं हो पाया था। इस किले का विधिवत निर्माण कार्य राजा मान सिंह प्रथम ने 1600 ईस्वी में करवाया।
अठारहवीं शताब्दी में सवाई जयसिंह ने इस किले को पूरा करवाया तभी से यह किला जयगढ़ नाम से जाना जाने लगा। यह किला करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बा तथा आधा किलोमीटर चौड़ा है।
Jaigarh fort architecture: किले में प्रवेश के साथ ही जलेब चौक आता है। यहां सेना के लिए बैरके हैं तथा युद्ध की दृष्टि से यह चौक बहुत ही महत्वपूर्ण है। मान सिंह द्वितीय ने बाद में इन्हें बंद करा दिया था। इसके बाईं तरफ एक मुख्य दरवाजा है। जो सीधा आमेर की ओर निकलता है।
एक अन्य दरवाजा भी ठीक बाईं तरफ है। जहां बाहर भैरूजी का मंदिर अवस्थित है। माना जाता है कि किले की रक्षा के लिए यहां भैरव देव की स्थापना की गई थी। तोपखाना भी यहीं स्थित है। यहां तोपें तैयार की जाती है।
देश में 18वीं सदी में गन बनाने का कारखाना कहीं नहीं मिलता केवल जयपुर के जयगढ़ किले में उस समय तोपें गेहूं का भूसा तथा मिट्टी मिलाकर मोल्ड करके बनाई गईं। कुछ प्रमाण आज भी वहां उपलब्ध हैं। वहीं एक भट्ठी भी है जहां बरमा से ठोस तोप को गलाया जाता था।
इस बरमा को चार बैलों की सहायता से चलाया जाता था। शुभ कार्य में श्री गणेश पूजन हमारी संस्कृति में अनिवार्य माना गया है, यहां भी तोप का काम शुरू करने से पूर्व गणेश जी की पूजन की व्यवस्था है और गणेश की जो मूर्ति यहां प्रतिष्ठित है वह इतनी जीवंत है कि लगातार देखते रहने का मन करता है।
संभवत: दैविक शक्तियों से मनुष्य परोक्ष रूप से भीतर ऊर्जा पाता रहा है। किले में स्थित पिछले दरवाजे की ओर चढ़ाई पर सवाई जय सिंह बाण नामक तोप को अवस्थित किया गया है। यह तोप इतनी भारी भरकम है कि गाड़ी में रख कर ही इधर-उधर ले जाई जा सकती है परंतु यह चारों तरफ घूम जाती है। 1857 में लगाई गई इस तोप की लम्बाई 20 फुट है। दशहरे पर तोप की शस्त्र पूजा किए जाने का प्रावधान है।
बाईं और दीया बुर्ज देखते ही आंखें खुली रह जाती हैं। एक तरह से ‘वॉच टावर’ की तर्ज पर इसका निर्माण हुआ है। 107 सीढिय़ों वाले इस बुर्ज की सात मंजिलें हैं, जहां से दूर-दूर तक बखूबी देखा जा सकता है। देसी राडार की श्रेणी में भी इसे रखा जा सकता है। दुश्मन का पता लगाने में यह बुर्ज बहुत उपादेय था।
पास ही में दमदमा है, जहां कुछ तोपें अभी भी पड़ी हुई हैं। कुछ दूर में श्री जय सिंह के लघु भ्राता श्री विजय सिंह का आवास स्थान है जो यहां विजय गढ़ी के नाम से जाना जाता है। यह महल बहुत ही भव्य तथा सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत था। जयगढ़ एक स्वप्न लोक है जिसे देखते रहने पर भी मन नहीं भरता तथा कौतूहल बराबर बना रहता है। जयगढ़ का खजाना कहां है, यह आज भी रहस्य है।