Jainisim: जैन जगत की देवी स्वरूपा 3 महाश्रमणियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Nov, 2024 11:26 AM

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Jainisim: उत्तर भारत की जैन परम्परा में श्री पार्वती जी म., श्री राजमति जी म. तथा श्री पन्नादेवी जी म. की यश र्कीत ध्रुव तारे की भांति सबका मार्गदर्शन करती है। पार्वती जी म. ने 1855 में उत्तर प्रदेश के भोड़पुरी जिला आगरा के संभ्रात राजपूत परिवार में...

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Jainisim: उत्तर भारत की जैन परम्परा में श्री पार्वती जी म., श्री राजमति जी म. तथा श्री पन्नादेवी जी म. की यश र्कीत ध्रुव तारे की भांति सबका मार्गदर्शन करती है। पार्वती जी म. ने 1855 में उत्तर प्रदेश के भोड़पुरी जिला आगरा के संभ्रात राजपूत परिवार में जन्म लेकर पंजाब जैनाचार्य श्री अमर सिंह जी म. की ध्यान साधना से प्रभावित होकर 28 नवम्बर, 1872 को महासती श्री मेलो जी म. से जैन भगवती दीक्षा अंगीकार की। आप प्रथम साध्वी हैं जिन्होंने प्रवर्तनी पद को सुशोभित करके नारी की गरिमा को उज्ज्वल व गौरान्वित किया। आपके  नाम से जालंधर में पार्वती जैन सीनियर सैकेंडरी स्कूल चल रहा है। 

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18 जनवरी, 1936 को आपने समाधिमरण को स्वीकार करके इस नश्वर काया का विसर्जन कर दिया। आपने अपने जीवन काल में 50 से अधिक पुस्तकों का सृजन किया। वर्तमान में पंजाब की लगभग 400 साध्वियां आपकी यश र्कीत में अभिवृद्धि कर रही हैं। आपकी 4 प्रमुख शिष्याओं में से द्वितीय शिष्या श्री राजमति जी म.थीं। उन्होंने अमृतसर में 9 मई, 1892 को 21 वर्ष की यौवनावस्था में समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं ठुकरा कर प्रथम रात्रि में ही पति से आज्ञा लेकर आपके चरणों में प्रवज्या को स्वीकार कर लिया था। आपके देवलोक गमन के पश्चात पांचाल के समस्त संघों ने इन्हें प्रवर्तनी पद पर आसीन किया। इनके नाम से जालंधर में राजमति जैन हाई स्कूल चल रहा है। 

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कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी 10 नवम्बर, 1953 गुरुवार को उन्होंने भी संथारा संलेखना लेकर अपनी देह का परित्याग कर दिया था। प्रवर्तनी श्री राजमति जी म. की 6 शिष्याओं में द्वितीय सुशिष्या पन्नादेवी जी म. थीं। 4 नवम्बर, 1892 को राजस्थान के सोजत नगर के संभ्रात क्षत्रिय परिवार में जन्मी पन्ना देवी ने 10 वर्ष की अल्पायु में आपके चरणों में 15 जुलाई, 1902 रोहतक में श्रमणी दीक्षा को स्वीकार करके बाल योगिनी के रूप में अपने भव्य व दिव्य व्यक्तित्व को निखारा। श्री पन्नादेवी जी म.  ने 27 मई 1980 मंगलवार द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी के दिन समाधिमरण को स्वीकार करके अपने शरीर का विसर्जन करके अनंत का साक्षात्कार किया।  छुआछूत, व्यसन मुक्ति, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा और सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए आपने राष्ट्रव्यापी कार्य किए। तीनों महाश्रमणियों ने निर्धन की कुटिया से लेकर राजप्रसादों तक जिन शासन की अलख जगाते हुए भारत के अधिकांश अंचलों में हजारों मील पद यात्रा करते हुए मानव सेवा, जीवदया, रुग्ण सेवा के ऐतिहासिक कार्य अपनी प्रेरणाओं से सम्पन्न करवाए जो आपकी र्कीत में चार चांद लगा रहे हैं।

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