आरोपी और दोषी होने के बावजूद स्वयंभू भगवानों के आगे क्यों नतमस्तक हैं देश के लाखों लोग !

Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Jul, 2024 04:57 PM

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हाथरस में स्वयंभू भगवान नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में भले ही 121 लोगों की जान चली गई लेकिन देश में ऐसी घटनाओं से

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जालंधर (इंट): हाथरस में स्वयंभू भगवान नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में भले ही 121 लोगों की जान चली गई लेकिन देश में ऐसी घटनाओं से लोगों की बाबाओं के प्रति आस्था में  जरा भी कमी नहीं आती है। 

हैरत की बात तो यह है कि कई बाबा ऐसे हैं जिन पर कई गंभीर आरोप हैं और जेल में बंद होने के बावजूद लाखों भारतीय आज भी उनके समक्ष नतमस्तक होते हैं। हाथरस की घटना ने भी देश के एक बड़े शहरी तबके को आश्चर्यचकित कर दिया होगा कि इतने सारे लोग बाबा के आश्रम में उनके पैरों की मिट्टी या उनके सत्संग में दिए जाने वाले ‘पवित्र’ जल को हाथ लगाने के लिए क्यों आते हैं ?

निम्न मध्यम वर्ग से भोले बाबा के अनुयायी
विडम्बना तो यह है कि नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा की तरह, कई स्वयंभू बाबाओं ने एक बड़ी संख्या में अनुयायी जुटाए हैं। इन्हीं के दम पर वे आलीशान स्वीमिंग पूल और हरियाली वाले विशाल आश्रमों में लग्जरी लाइफ जीते हैं। वे दर्जनों स्वयंसेवकों के साथ एस.यू.वी. में घूमते हैं और अक्सर राजनेताओं, फिल्मी सितारों और अन्य मशहूर हस्तियों के संरक्षण का आनंद लेते हैं। नारायण हरि साकार के एक सेवक अवधेश माहेश्वरी के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके अनुयायी देश भर से आते हैं लेकिन वे मुख्य रूप से निम्न मध्यम वर्ग से हैं। भोले बाबा ने जाति के बंधन और कलंक से मुक्त समाज के विचार का समर्थन करके एक बहुत बड़े दलित समुदाय के बीच प्रभाव डाला।

तथाकथित भगवान साधारण पृष्ठभूमि से
हरियाणा के बाबा रामपाल और डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम इंसा अपराधी पाए गए हैं जबकि आसाराम को बंधक बनाने और बलात्कार करने का दोषी पाया गया है। इनमें से ज्यादातर ‘तथाकथित भगवान’ खुद एक साधारण पृष्ठभूमि से हैं।  एक रिपोर्ट के मुताबिक भोले बाबा दलित हैं और उनकी पहुंच मुख्य रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े लोगों के बीच है। इसके अलावा उनके पास धनी अनुयायी भी हैं जो उन्हें लाखों रुपए दान में देते हैं।  इसी तरह सोनीपत के एक किसान के बेटे संत रामपाल की भी साधारण सी पृष्ठभूमि है, संत बनने से पहले वह सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे।  

क्या कहते हैं समाजशास्त्री
जे.एन.यू. के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफैसर अजय गुडवर्थी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि जाति-चेतन समाज में, पंथ समुदाय अपनेपन की भावना देते हैं। वह कहते हैं कि समाज में ऐसी कोई सामाजिक गतिशीलता नहीं है जहां एक उच्च जाति और एक निम्न जाति को हिंदू पंथ के हिस्से के रूप में एक साथ बैठाया जा सके। दूसरी ओर पंथ लोगों को सशक्तिकरण की भावना देते हैं।

क्या है अनुयायी बनने की वजह 
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली समाजशास्त्री के. कल्याणी बताती हैं कि अधिकांश बाबा स्कूल और स्वास्थ्य शिविर जैसे परोपकारी प्रतिष्ठान चलाते हैं और वंचितों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। हम देखते हैं कि बहुजन समुदाय के कई सदस्य इन संप्रदायों के अनुयायी बन जाते हैं। जाति संरचना की कठोरता निचली जातियों को शामिल करने में विफल रहती है, इसलिए उनका आध्यात्मिकता के वैकल्पिक रूपों जैसे कि बाबाओं और संतों की ओर जाना एक अपरिहार्य परिणाम बन जाता है। वे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का वेश भी धारण करते हैं, नशीली दवाओं और शराब की लत, जातिगत भेदभाव, घरेलू हिंसा आदि जैसी समस्याओं के खिलाफ अभियान चलाते हैं। हरियाणा में रामपाल के आश्रमों में, सत्संगों में शाकाहार को बढ़ावा दिया जाता है, यौन संकीर्णता और शराब के सेवन को मना किया जाता है।
 

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