Edited By ,Updated: 31 Jan, 2017 10:00 AM
![january 31st death anniversary acharya shri atma ram ji maharaj](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2017_1image_09_52_371820790jain-ll.jpg)
भारतीय संस्कृति की मूल प्रवृत्ति है- तप, संयम और साधना। इन्हीं उत्कृष्ट गुणों के कारण हमारे महापुरुषों ने मानव जीवन को आंदोलित और प्रभावित किया। इसी भारतीय संस्कृति रूपी स्रोतस्विनी की
भारतीय संस्कृति की मूल प्रवृत्ति है- तप, संयम और साधना। इन्हीं उत्कृष्ट गुणों के कारण हमारे महापुरुषों ने मानव जीवन को आंदोलित और प्रभावित किया। इसी भारतीय संस्कृति रूपी स्रोतस्विनी की एक धारा थे- आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्मा राम जी महाराज। आचार्य श्री जी का जन्म राहों नगरी (पंजाब) में पिता श्री मनसा राम चोपड़ा और पूज्य माता परमेश्वरी देवी के घर 24 सितम्बर, 1882 ई. को हुआ। पूर्व जन्मों के संस्कारों तथा पुण्योदय से आपने पूज्य गुरुदेव श्री शालिग्राम जी महाराज के श्री चरणों में 1894 ई. में छत्तबनूड़ (पंजाब) में मुनि दीक्षा अंगीकार की। अपनी साधना तथा ज्ञान के बल पर आपने अनेक पदवियां प्राप्त कीं। श्री संघ द्वारा आपको उपाध्याय पद 1912 ई.(अमृतसर में), पंजाब का आचार्य पद 1946 ई.(लुधियाना में) और श्रमण संघीय आचार्य सम्राट का पद 1952 ई. राजस्थान (साधड़ी सम्मेलन में) दिया गया। आचार्य सम्राट का चादर महोत्सव 1954 ई. में लुधियाना के बाग खजांचिया में हुआ जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर ने की थी।
जीवन तथा जगत का गहन अनुभव लिए, जैन तथा जैनेतर साहित्य के प्रकांड पंडित, मानवता के मसीहा, साम्प्रदायिकता से कोसों दूर, अध्यात्म के स्रोत आचार्य श्री जी ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने संतप्त मानवता को शांति तथा एकता का संदेश दिया। आपको शास्त्र तथा लोक व्यवहार का नीति तथा नैतिकता का, धर्म तथा दर्शन का एक समान ज्ञान था।
आपके दरबार में जो भी आया निराश नहीं गया। आपने जैनागमों का अनुवाद कर उन्हें विद्वानों के लिए गाह्य बना दिया। इनके अतिरिक्त आपने मौलिक रचनाओं का सृजन भी किया। आपका मौलिक साहित्य समकालीन समाज का नेतृत्व करता है। इन कृत्तियों में धर्म अध्यात्म, राष्ट्रीयता, मानव धर्म, अनेकांतवाद महिला सुधार तथा योगादि विषयों को स्पर्श किया गया है।
आचार्य श्री जी अध्यात्मवादी होने के साथ-साथ राष्ट्रवादी महापुरुष थे। आप लोक मंगल की भावना से अनुप्राणित महात्मा थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोरारजी देसाई, भीमसेन सच्चर तथा प्रताप सिंह कैरों जैसे राजनेता समय-समय पर राष्ट्र हित विचार-विमर्श के लिए आपके पास आते रहते थे। आप इन राजनेताओं को सतत् संघर्ष और राष्ट्र सेवा की प्रेरणा देते रहते थे और जैन सम्प्रदाय के आचार्य होते हुए भी अपने गुणों के कारण जन-जन के कंठाहार बन गए थे। आपका देवलोक गमन 31 जनवरी, 1962 ई. में लुधियाना में हुआ। आप की पुण्यतिथि श्रद्धापूर्वक मनाई जा रही है।