Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 May, 2018 01:40 PM
माला के धागे के एक ही सूत में पिरोए हुए 108 मनकों के द्वारा जाप करने वाला क्षर-अक्षर-अक्षरातीत इन तीन पुरुषों का स्मरण करता है। इन 108 मनकों में से 81 पक्ष क्षर ब्रह्मांड के हैं, 2 पक्ष अक्षर के हैं, तो 25 अक्षरातीत के हैं। केवल अक्षरातीत का स्मरण...
माला के धागे के एक ही सूत में पिरोए हुए 108 मनकों के द्वारा जाप करने वाला क्षर-अक्षर-अक्षरातीत इन तीन पुरुषों का स्मरण करता है। इन 108 मनकों में से 81 पक्ष क्षर ब्रह्मांड के हैं, 2 पक्ष अक्षर के हैं, तो 25 अक्षरातीत के हैं। केवल अक्षरातीत का स्मरण ही मानव के लिए मोक्ष का द्वार खोलकर उसे जन्म-मरण की कभी न समाप्त होने वाली कड़ी से मुक्त करता है।
क्षर ब्रह्मांड में नवधा प्रकार की भक्ति प्रचलित है और भक्ति करने के इन नौ साधनों में से जिनमें से एक को चुनकर अपना लक्ष्य बनाया उनका नाम भक्ति के साथ जुड़ गया। भगवान के साथ संबंध जोड़ने के ये 9 साधन इस प्रकार हैं- 1. श्रवण भक्ति, 2. कीर्तन, 3. स्मरण, 4. पाद सेवन, 5. अर्चना, 6. वंदना, 7. दास्य भाव, 8. सखा भाव, 9. आत्म निवेदन। ये तो हुई नौ प्रकार की भक्ति जिसके द्वारा मोक्ष की सीढ़ी चढ़ते हैं।
इस प्रकार नवधा प्रकार भक्ति के नौ साधनों का पालन तीन प्रकार के भक्त करते हैं। 9X3=27, सत, रज, तम इन तीनों गुणों के भेद से 27X3=81 हो जाते हैं, जिनके मार्ग पर चलने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अलग-अलग माला का प्रयोग
मालाएं तो सभी किसी न किसी प्रकार के पत्थर की ही होती हैं परन्तु प्रत्येक साधना में अलग-अलग मालाओं का उल्लेख रहता है। इसका कारण यही है कि मालाएं तो सभी एक सी ही हैं परन्तु जिस साधना विशेष के लिए जिस माला को बताया गया है उस साधना के लिए वही माला प्रयुक्त करनी चाहिए।
श्री महालक्ष्मी साधना के लिए सिद्ध की गई माला से यक्षणी साधना सम्पन्न नहीं हो सकेगी और अगर प्रयास किया भी जाए तो असफलता ही मिलेगी। जो मुख्य बात होती है वह माला के पदार्थ में नहीं अपितु इस बात में होती है कि वह किन मंत्रों से और किस पद्धति से प्राण प्रतिष्ठित की गई है। महत्व-मंत्र ऊर्जा एवं प्राण-चेतना का ही होता है। समस्त प्रकार की मालाएं मिलती हैं परन्तु वे केवल पत्थर की मालाएं होती हैं, चेतना के नाम पर वे निष्प्राण होती हैं और इसी कारण साधना के लिए निरुद्देश्य भी होती हैं।