Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Sep, 2023 10:53 AM
ज्येष्ठा गौरी पूजा का महापर्व भाद्रपद के महीने में मनाया जाता है। महाराष्ट्र के मुख्य पर्वों में से यह एक है। महिलाओं में इस व्रत को लेकर बहुत उत्साह होता है। सनातन शास्त्रों में इन्हें बप्पा की
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Jyeshtha Gauri 2023: ज्येष्ठा गौरी पूजा का महापर्व भाद्रपद के महीने में मनाया जाता है। महाराष्ट्र के मुख्य पर्वों में से यह एक है। महिलाओं में इस व्रत को लेकर बहुत उत्साह होता है। सनातन शास्त्रों में इन्हें बप्पा की माता व देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन बताया गया है। तभी तो इन्हें जेष्ठा कहा जाता है अर्थात बड़ी। पद्मपुराण में कहा गया है, जिस समय समुद्र मंथन हुआ, ज्येष्ठा गौरी विष निकलने के बाद ज्येष्ठा रुप में अवतरित हुई थी। लाल वस्त्रों से सजी चतुर्भुजी देवी के एक हाथ में अभयमुद्रा, दूसरे में वरमुद्रा, तीसरे में तीर व चौथे में धनुष है। कौआ पर सवार देवी कमल पर विराजित हैं। इनका निवास पीपल पर है। शास्त्रों में इन्हें धूमावती, अलक्ष्मी व जेष्ठा भी कहा गया है। ये पाप, आलस और दुख पर अपना आधिपत्य रखती हैं। पौराणिक मतानुसार कालांतर में जेष्ठा गौरी ने असुरों का वध कर असुरों से पीड़ित स्त्रियों के सुहाग की रक्षा की थी। जेष्ठा गौरी के पूजन से गृहक्लेश दूर होते हैं, रोगों से छुटकारा मिलता हैं और संतान के कष्ट दूर होते हैं।
Importance of Jyeshta Gauri Vrat ज्येष्ठा गौरी व्रत महत्व
ज्येष्ठा गौरी भगवान गणेश की माता हैं। माता पार्वती को ही मां ज्येष्ठा गौरी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा ज्येष्ठा गौरी माता को अन्नपूर्ण भी कहा जाता है। ज्येष्ठा गौरी का व्रत महिलाओं द्वारा देवी गौरी का आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि ज्येष्ठा गौरी की पूजा करने से शादीशुदा जीवन खुशियों से भर जाता है और सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इस दिन बहुत सारी अविवाहित लड़कियां माता गौरी की पूजा करती हैं, ताकि उन्हें एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाए।
Auspicious time of Jyestha Gauri ज्येष्ठा गौरी का शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठा नक्षत्र तिथि प्रारंभ - 21 सितंबर, दोपहर 3: 00 बजकर 35 मिनट तक
ज्येष्ठा नक्षत्र तिथि समापन- 22 सितंबर, 3: 00 बजकर 35 मिनट तक
Jyestha gauri puja method ज्येष्ठा गौरी पूजा विधि
ज्येष्ठा गौरी व्रत के दिन माता गौरी की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में स्थापित किया जाता है। माता गौरी की प्रतिमा को जल से स्नान करवाकर साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर विराजित करें। फिर माता को साड़ी पहनाकर 16 श्रृंगार करें। उनके माथे पर हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाकर, खुद के मस्तक पर भी लगाएं। फिर 16 तरह के व्यंजन माता गौरी को चढ़ाएं। इसके बाद 16 दीपक के साथ माता की आरती करने के बाद इस व्रत का समापन करें।
पूजा मंत्र: ॐ महेश्वर्यै देव्यै नमः॥