Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Feb, 2024 10:45 AM
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जिसने ईश्वर की शरण ले ली, वह मरता नहीं, मुक्त हो जाता है। सांसारिक विषय वासनाओं से पूर्ण विरक्ति ही उचित है। सन् 1518 में कबीर जी की आत्मा इस जगत को छोड़ कर परमात्मा में समा गई। कबीर जी के चेहरे में रूहानी चमक थी।
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Kabir Das teachings: जिसने ईश्वर की शरण ले ली, वह मरता नहीं, मुक्त हो जाता है। सांसारिक विषय वासनाओं से पूर्ण विरक्ति ही उचित है। सन् 1518 में कबीर जी की आत्मा इस जगत को छोड़ कर परमात्मा में समा गई। कबीर जी के चेहरे में रूहानी चमक थी।
मन हो कठोर, मरे बनारस नरक न बांचिया जाई, हर का संत मरे, हाड़ंबै त सगली सैन तराई।
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कबीर साहब उच्चारण करते हैं कि कुछ लोग अंत समय में दूर-दूर से चल कर बनारस आते हैं, ताकि मुक्ति प्राप्त हो सके। कबीर जी ने साफ-साफ कह दिया कि कठोर हृदय पापी यदि बनारस में मरेगा तो नरक में जाएगा। भक्ति करने वाले यदि मगहर में मरते हैं तो स्वयं को ही नहीं, बल्कि शिष्यों को भी तार देते हैं। कबीर साहब ने जात-पात के बंधनों और रीति-रिवाजों को बढ़ावा न दिया और इन पाखंडों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जो धारणाएं और भावनाएं समाज में नफरत एवं दिलों में जलन पैदा करती हैं, उन्हें अपने से दूर रखना चाहिए, ताकि समाज में आपसी भाईचारा एवं प्रेम जाग उठे। उन्होंने लोगों को राजाओं, महाराजाओं के आगे भी न झुक कर एकजुटता और जात-पात की जंजीरों को तोड़ने का संदेश दिया।
कबीर जी ने मार्गदर्शन दिया कि जब भगवान की कोई जाति नहीं है तो उसके प्रेमियों की क्या जाति हो सकती है। मनुष्यों को जात-पात के बंधनों से दूर रहना चाहिए और इस कीचड़ में नहीं डूबना चाहिए।
हिंदू कहूं तो मैं नहीं, मुसलमान भी नाहिं, पांच तत्व का पूतला, गैबी खेलै माहिं।
उन्होंने संदेश दिया कि मैं न हिंदू हैं और न मुसलमान, वह सभी मनुष्यों के समान पांच तत्वों की देह धारण किए हुए हैं, जिसके अंदर अदृश्य आत्मा निवास करती है।
मरता-मरता जग मुवा, औसर मुवा न कोई कबीर ऐसे मरि, ज्यूं बहुरि न मरना होई।।
सांसारिक विषयों में फंस कर मरते-मरते यह संसार नष्ट हो रहा है, पर किसी को उचित अवसर पर मरना नहीं आया। कबीर साहब संदेश देते हैं कि हे मन ऐसा मर जिससे फिर कभी मरना न पड़े और जीवन-मृत्यु के चक्र से ही छूट जाए।
माया मुई न मन मुवा मरि-मरि गया सरीर। आसा त्रिष्णा नां मुई, यौं कहि गया कबीर।
कबीर जी ने कहा है कि संसार में न माया मरती है न माया के वशीभूत होने वाला मन मरता है, आशा और तृष्णा नहीं मरती, परंतु यह शरीर बार-बार मरता है। आशा-तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है।
कबीर जी के अंतिम संस्कार को लेकर उनके शिष्यों में मतभेद हो गया। नवाब बिजली खान तथा मुस्लिम अनुयायी दफनाना चाहते थे, जबकि राजा वीर सिंह बघेला की रहनुमाई में हिन्दू कबीर जी के शव का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। दोनों में विवाद बढ़ा और झगड़े की नौबत आ गई। उस समय कुछ शिष्यों ने कबीर जी के शव की ओर ध्यान दिया तो कपड़ा हटाने पर शव की जगह फूलों का ढेर पाया।
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