Kabir Vani: ऐसे ही शिष्य होते हैं साधु-संतों के प्रिय देखें, क्या भी हैं इस List में

Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 Oct, 2024 09:42 AM

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सद्गुरु ज्ञान से पूर्ण होते हैं परंतु अभिमानी नहीं होते और सबका हित करने वाले, सबसे मिल-जुल कर रहने वाले होते हैं। सदा ही सत्य का पालन करने वाले

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ज्ञानी अभिमानी नहीं, सब काहू सो हेत।
सत्यावान परमार्थों, आदर भाव सहेत।

भावार्थ : सद्गुरु ज्ञान से पूर्ण होते हैं परंतु अभिमानी नहीं होते और सबका हित करने वाले, सबसे मिल-जुल कर रहने वाले होते हैं। सदा ही सत्य का पालन करने वाले, परमार्थ-प्रेमी (परोपकारी) और सबका आदर- भाव करने वाले होते हैं।

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गुरु आज्ञा लै आवही, गुरु आज्ञा लैं जाय।
कहैं कबीर सो संत प्रिय, बहु विधि अमृत पाय।।

भावार्थ : कबीर जी कहते हैं कि जो गुरु के सच्चे सेवक हैं उन्हें गुरु की आज्ञा लेकर ही आना चाहिए और गुरु की आज्ञानुसार ही कहीं जाना चाहिए। ऐसे ही शिष्य सेवक साधु-संतों के प्रिय होते हैं और वे सभी प्रकार से ज्ञानामृत पाते हैं।

विषय त्याग बैराग है, समता कहिए ज्ञान।
सुखदायी सब जीव सों,    
यही भक्ति परमान।

भावार्थ : पांचों विषयों का त्याग ही वैराग्य है और भेदभाव से रहित सभी से समता का व्यवहार ज्ञान कहलाता है। संसार के सभी जीवों को सुख देने वाला आचरण तथा स्नेह, भक्ति का सत्य प्रमाण है। गुरु भक्त में इन सद्गुणों का समावेश होता है।

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भक्ति पदार्थ तब मिलै, जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति, जो पूरण भाग मिलाय।

भावार्थ : भक्ति बहुत ही उत्तम एवं अनमोल पदार्थ है। यह पदार्थ तभी मिलता है जब पूर्ण सद्गुरु स्वयं सहायक हों, उनका सद्ज्ञान प्राप्त हो। प्रेम-प्रीति से परिपूर्ण भक्ति तभी प्राप्त होती है जब सद्गुरु की कृपा से पूर्ण सौभाग्य मिले।

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