Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Sep, 2023 08:34 AM
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कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झीलें हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु,
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Kailash Mansarover: कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झीलें हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है। इस तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊंचे शिखर और उससे लगी मानसरोवर झील तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड भी कहते हैं।
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कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है, जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। ब्लैक रॉक से बना कैलाश एक अद्भुत पहाड़ है, जो सुंदर परिदृश्य से घिरा हुआ है।
कैलाश सबसे पवित्र पहाड़ों में से एक है, जो चार धर्मों के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। बौद्ध, जैन, हिंदू और तिब्बती बॉन धर्म से जुड़े दुनिया भर से हजारों लोग हर साल इसकी तीर्थ यात्रा करते हैं। इसकी परिक्रमा का भी काफी महत्व माना गया है। तिब्बती (लामा) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं।
कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं, किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गब्र्यांग, कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जाने वाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। यह 544 किलोमीटर लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव-उतार हैं। कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। चीन अधिकृत तिब्बत में स्थित होने के कारण वहां जाने के लिए आपको चीन से वीजा लेना जरूरी है।
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माना जाता है कि कैलाश यात्रा सौभाग्य प्रदान करने के साथ ही पापों को दूर कर देती है। हालांकि, कैलाश यात्रा आसान नहीं है और कई किलोमीटर तक पैदल चल कर इसे पूरा करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव कैलाश नामक इस प्रसिद्ध पर्वत के शिखर पर स्थित हैं। तिब्बती बौद्धों का विश्वास है कि यह पर्वत बुद्ध डेमोकोक का घर है जो सर्वोच्च सद्भाव के प्रतीक हैं। तिब्बत में मान्यता है कि कैलाश पर आकाश की देवी सिपाइमेन का निवास है। जैन धर्म में, कैलाश को अष्टपद पर्वत के रूप में जाना जाता है और यह वह जगह है जहां ऋषभदेव पुनर्जन्म से स्वतंत्रता प्राप्त कर चुके हैं।
कैलाश से जुड़े हैं कई रहस्य
कैलाश की गिनती दुनिया की सबसे कठिन पर्वत शृंखलाओं में की जाती है। इस वजह से चढ़ाई के लिए इस स्थान को काफी दुर्गम कहा जाता है। अब तक कोई भी तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत के ऊपर चढ़ने में कामयाब नहीं हुआ। भगवान शिव का निवास स्थान कहे जाने वाली इस जगह पर कई पर्वतारोहियों ने चढ़ने की कोशिश की, पर उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिल पाई।
रूस के एक पर्वतारोही सरगे सिस्टियाकोव कैलाश पर्वत के बहुत करीब तक पहुंच गए थे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया, ‘‘मैं जैसे ही इस पर्वत के करीब पहुंचा मेरे दिल की धड़कन काफी तेज हो गई थी। उस दौरान मुझे काफी कमजोरी महसूस हो रही थी। इसे देखते हुए मैंने वापस जाने का फैसला लिया। नीचे की तरफ मैं जैसे बढ़ा वैसे ही धीरे-धीरे मेरी सेहत में सुधार होने लगा।’’
कुछ इसी तरह का अनुभव एक दूसरे पर्वतारोही कर्नल आर.सी. विल्सन ने भी साझा किया था। उनके अनुसार जैसे ही वह कैलाश पर्वत के नजदीक पहुंचे अचानक ही तेजी से बर्फबारी होने लगी, जिसने उनका रास्ता रोक दिया और आगे जाने नहीं दिया।
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कैलाश पर्वत के ऊपर 7 प्रकार की लाइटें चमकती हैं। कई लोगों ने इन लाइटों को चमकते हुए देखने का दावा किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा पर्वत के चुंबकीय बल के कारण होता है।
कई वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस जगह पर एक अलौकिक ऊर्जा का प्रवाह है। इसी वजह से कई तपस्वी इस पवित्र स्थान पर आध्यात्मिक क्रियाएं करते हैं, ताकि उनको समाधि का अनुभव मिल सके। यही नहीं, कैलाश पर्वत की आकृति भी एक रहस्य का विषय है। इस पर्वत का आकार एक पिरामिड की तरह दिखता है। कहा जाता है कि कैलाश पर्वत धरती का केंद्र बिंदु है। कई लोग इस जगह को भौगोलिक ध्रुव मानते हैं।
लोगों का कहना है कि कैलाश मानसरोवर के आस-पास डमरू और ओम के उच्चारण की ध्वनि सुनाई देती है जो आज भी रहस्य है।
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