Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Aug, 2024 01:33 AM
कजरी तीज जिसे कजली तीज भी कहा जाता है, भादों मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि जुलाई या अगस्त के महीने में आती है। कजरी तीज मुख्यत: महिलाओं
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Kajari Teej 2024- कजरी तीज जिसे कजली तीज भी कहा जाता है, भादों मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि जुलाई या अगस्त के महीने में आती है। कजरी तीज मुख्यत: महिलाओं का पर्व है। यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रमुखता से मनाया जाता है। इनमें से कई इलाकों में कजरी तीज को बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है। वैवाहिक जीवन की सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है।
Traditions on Kajari Teej कजरी तीज पर होने वाली परंपरा
इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए कजली तीज का व्रत रखती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
कजरी तीज पर जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ते हैं।
इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद भोजन किया जाता है।
कजली तीज पर घर में झूले डाले जाते हैं और महिलाएं एकत्रित होकर नाचती-गाती हैं।
इस दिन कजरी गीत गाने की विशेष परंपरा है। यूपी और बिहार में लोग ढोलक की थाप पर कजरी गीत गाते हैं।
Auspicious time of Kajari Teej कजरी तीज का शुभ समय- 21 अगस्त 2024 को 5:09:19 से तृतीया आरम्भ
22 अगस्त 2024 को 1:48:37 पर तृतीया समाप्त
Method of worship of Kajari Teej कजरी तीज की पूजा विधि
कजरी तीज के अवसर पर नीमड़ी माता की पूजा करने का विधान है। पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है (घी और गुड़ से पाल बांधकर) और उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं। इसके अलावा लोटे में कच्चा दूध लें और फिर शाम के समय शृंगार करने के बाद नीमड़ी माता की पूजा इस प्रकार करें..
सर्वप्रथम नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं।
नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए।
नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं। दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें।
नीमड़ी माता को कोई फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें।
पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
Method of offering water to the moon चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
कजरी तीज पर संध्या के समय नीमड़ी माता की पूजा के बाद चांद को अर्घ्य देने की परंपरा है।
चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मोली, अक्षत चढ़ायें और फिर भोग अर्पित करें।
चांदी की अंगूठी और आखे (गेहूं के दाने) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घुमें।
Rules of Kajari Teej fast कजरी तीज व्रत के नियम
यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है। हालांकि गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं।
यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है।
उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो तो फलाहार किया जा सकता है।
उपरोक्त विधि-विधान के अनुसार कजरी तीज का व्रत रखने से सौभाग्यवती स्त्री के परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। वहीं कुंवारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है।
आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
9005804317