Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Aug, 2023 07:11 AM
धरती पर जब-जब अत्याचार बढ़ा है, तब-तब ईश्वर ने मृत्युलोक में अवतार लेकर धरा को पापियों से मुक्त कर सत्य और धर्म को स्थापित किया है। पुराणों में भगवान विष्णु के दशावतारों का वर्णन है।
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Kalki Jayanti 2022: धरती पर जब-जब अत्याचार बढ़ा है, तब-तब ईश्वर ने मृत्युलोक में अवतार लेकर धरा को पापियों से मुक्त कर सत्य और धर्म को स्थापित किया है। पुराणों में भगवान विष्णु के दशावतारों का वर्णन है। इनमें से नौ अवतार हो चुके हैं, दसवें अवतार का आना अभी शेष है। विष्णु पुराण के चौबीसवें खंड में लिखा है कि कलियुग की समाप्ति पर श्री कल्कि के रूप में विष्णु भगवान अवतार लेंगे।
धर्म ग्रंथों के अनुसार कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णु यशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर पुत्र के रूप में भगवान कल्कि जन्म लेंगे। देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर वह संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन: स्थापना करेंगे।
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स्कंद पुराण के वराह खंड में संभल की महत्ता वर्णित है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि 68 तीर्थों व 19 धर्म कूपों वाली इस नगरी में ही भगवान श्री कल्कि विष्णु का अवतार होगा। इसी तरह श्रीमद् भागवत महापुराण के बारहवें स्कंद के दूसरे अध्याय में भी लिखा गया है कि चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति ये तीनों ग्रह जब पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण में एक साथ प्रवेश करेंगे तभी कलियुग का अवसान और सतयुग का आरंभ होगा।
विष्णु पुराण के चतुर्थ अंश चौबीसवें खंड में लिखा है कि संभल में विष्णु यश ब्राह्मण के घर कलियुग की समाप्ति पर श्री कल्कि विष्णु भगवान अवतार लेंगे। भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की द्वादशी कल्कि अवतार की तिथि होगी।
कलियुग की पूर्ण अवधि चार लाख बत्तीस हजार वर्ष बताई जाती है। कलियुग के अब तक लगभग छह हजार वर्ष बीत चुके हैं। विद्वान मानते हैं कि जब बीस से तीस वर्ष की आयु बड़ी मानी जाने लगेगी, धर्म का नाम भी सुनने को कहीं नहीं मिलेगा। रक्षक, भक्षक बन जाएंगे। भूख प्यास से सताई प्रजा कराहने लगेगी, तब कलियुग के चतुर्थ चरण में श्री कल्कि विष्णु भगवान का अवतार होगा। इन आकलनों के कारण संभल विश्व पटल पर श्री कल्कि अवतार भूमि के रूप में उभरा है।
इस पर एक नई बहस भी छिड़ी है कि क्या यह वही संभल है जिसकी पहचान वेदों में कल्कि अवतार के रूप में है। जब भी युग बदला, उस युग ने संभल को एक नया नाम दिया। सतयुग ने संभल को सत्यव्रत के नाम से पुकारा तो त्रेतायुग ने महिदिरि और द्वापर में संभल नगरी को पिंगल नाम मिला। जब कलियुग आया तो इसे संभल के नाम से जाना गया।
भारत में कल्कि अवतार के कई मंदिर भी हैं, जहां भगवान कल्कि की पूजा होती है। यह भगवान विष्णु का पहला अवतार हैं, जो अपनी लीला से पूर्व ही पूजे जाने लगे हैं। जयपुर में हवा महल के सामने भगवान कल्कि का प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान कल्कि के साथ ही उनके घोड़े की प्रतिमा भी स्थापित है।