Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2024 10:02 AM
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हुए थे और 17 अप्रैल 2024 को नवमी तिथि को पंचांग के अनुसार समाप्त होंगे। नवरात्रि व्रत पूर्ण करने से पहले लोग कन्या पूजन करते हैं तथा कन्याओं को भोजन करवाकर उनका
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Kanjak puja 2024: इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हुए थे और 17 अप्रैल 2024 को नवमी तिथि को पंचांग के अनुसार समाप्त होंगे। नवरात्रि व्रत पूर्ण करने से पहले लोग कन्या पूजन करते हैं तथा कन्याओं को भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। कन्या पूजन के लिए लोग महाष्टमी (16 अप्रैल 2024) और महानवमी (17 अप्रैल 2024) तिथि को अनुकूल समझते हैं। कुछ लोग महाष्टमी तिथि पर मां महागौरी तथा महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद घर में हवन करवाते हैं। हवन करवाने के बाद कन्या पूजन किया जाता है फिर व्रत को पूर्ण करते हैं।
जानिए नवरात्रि में क्यों पूजी जाती है कंजक, क्या है इसका महत्व और विधि ?
किस उम्र की कन्याओं की करें पूजा :
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए। हमें हमेशा 9 कन्याएं पूजनी चाहिए, जो कि माता के 9 स्वरूपों को दर्शाती हैं। उनके साथ एक बालक भी पूजा जाता है, जिसे हनुमान जी का रूप माना जाता है, जिसे लंगूर या लोगड़ा भी कहा जाता है। जिस तरह मां की पूजा भैरव के बिना पूरी नहीं मानी जाती, ठीक उसी तरह कन्या-पूजन भी लंगूर के बिना अधूरा होता है।
नवरात्रि में नौ कन्याओं को नौ देवीयों के रूप में पूजा जाता है- कहा जाता है भक्त का व्रत कंजक पूजने के बाद ही सफल होता है। कभी-कभी 9 कन्याएं नहीं मिल पाती हैं तो ध्यान रहे 9 नहीं तो 7 या 5 कन्याएं अवश्य पूजें। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही हैं तो उसमें भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अगर किसी कारणवश 9 कन्याएं बिठाने में आप असमर्थ हैं तो कुछ ही कन्याओं में भी यह पूजन किया जा सकता है। जितनी कन्याएं बची हैं, उनका भोजन आप गौमाता को खिला सकते हैं।
कन्या पूजन की विधि:
अगर आप महाष्टमी पर कन्या पूजन कर रहे हैं तो मां महागौरी की पूजा करने के बाद कन्या पूजन करें अन्यथा महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद कन्या पूजन करें। कन्या पूजन के लिए 9 कन्याओं और 1 बालक को आमंत्रित करें व उनके पैर धोकर आसन पर बिठा दीजिये। अब सभी कन्याओं और लंगूर को तिलक लगाइए और कलाई पर मौली को रक्षा सूत्र के रूप में बांधिए एवं माता की आरती कीजिए। मंदिर में मां को भोग लगाने के बाद कन्याओं और लंगूर को भोजन करवाइए और भोजन प्रसाद के साथ उन्हें फल और दक्षिणा दीजिए। अंत में सभी कन्याओं और लंगूर के पैर छूकर आशीर्वाद लीजिए और सम्मान पूर्वक सभी को विदा कीजिए। ऐसा करने से दुर्गा माता प्रसन्न होती हैं।
कन्याओं को माता के नौ रूप का प्रतीक मान भोजन की पेशकश की जाती है- प्रथागत भोजन निमन्त्रण में आमतौर पर पूरी, काले चने, सूजी का हलवा और कुछ फल, उपहार यथाशक्ति दक्षिणा इत्यादि शामिल होते हैं।
कन्याओं को उम्र के अनुसार पूजने के होते हैं अपने महत्व :
2 साल की कन्या की पूजा करने से घर के दुख और दरिद्रता दूर होती है।
3 साल की कन्या को त्रिमूर्ती का रूप माना जाता है, इन्हें पूजने से घर में धन और सुख की प्राप्ती होती है।
4 साल की कन्या को मां कल्याणी के रूप में पूजा जाता है, इनकी पूजा करने से कल्याण होता है।
5 साल की कन्या को रोहिणी माना जाता है, इन्हें पूजने से हमारा शरीर रोग मुक्त होता है।
6 साल की कन्या को काली का रूप माना जाता है, इनकी पूजा करना विद्या के लिए अच्छा होता है और राजयोग बनता है।
7 साल की कन्या को चंडी का रूप माना गया है, इन्हें पूजने से वैभव की प्राप्ती होती है।
8 साल की कन्या को शाम्भवी कहा जाता है, इन्हें पूजने से विवाद व गृह क्लेश खत्म होते हैं।
9 साल की कन्या दुर्गा का रूप होती है, इन्हें पूजने से शत्रुओं पर विजय मिलती है।
10 साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती है, जो अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर करती है।
Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM).