Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Nov, 2024 04:00 AM
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन कंस वध मनाया जाता है और इस वर्ष ये 11 नवंबर को है यानि आज। कंस वध की कथा भारतीय धार्मिक
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Kansa Vadh: हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन कंस वध मनाया जाता है और इस वर्ष ये 11 नवंबर को है यानि आज। कंस वध की कथा भारतीय धार्मिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जो भगवान श्री कृष्ण के जीवन के एक अद्वितीय मोड़ को दर्शाती है। यह अत्याचार और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक भी है। कंस वध का उल्लेख प्रमुख रूप से महाभारत, श्रीमद्भागवतम और अन्य पुराणों में किया गया है। यह कथा हमें जीवन के गहरे दार्शनिक पहलुओं जैसे कि सत्य की विजय, धर्म की रक्षा, और अधर्म का नाश, को समझने का अवसर प्रदान करती है।
कंस का जन्म राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती के यहाँ हुआ था। कंस का जन्म मथुरा के राजमहल में हुआ और वह बचपन से ही अत्यंत अहंकारी और क्रूर स्वभाव का था। एक दिन जब देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ तो इस अवसर पर आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। इस वाणी को सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को बंदी बना लिया और इस डर से कि उसकी मृत्यु का कारण उनका आठवां पुत्र बनेगा, उसने देवकी के सभी बच्चों को मार डालने का निर्णय लिया।
कंस ने देवकी के छह बच्चों को बेरहमी से मार डाला। हर बार जब देवकी गर्भवती होती कंस अपने सैनिकों को भेजकर बच्चे को मार डालता। लेकिन भगवान ने अपनी लीला से कंस के इस क्रूरता के प्रयासों को विफल कर दिया। देवकी के सातवें गर्भ को भगवान विष्णु ने अपनी दिव्य शक्ति से स्थानांतरित कर दिया और उसे यशोदा के गर्भ में भेज दिया, जिससे बलराम का जन्म हुआ।
कृष्ण का जन्म और कंस का भय
कंस के अत्याचारों के बाद देवकी के आठवें गर्भ में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। आकाशवाणी ने फिर से यही चेतावनी दी कि यह बच्चा कंस का वध करेगा। कृष्ण के जन्म के साथ ही भगवान ने अपनी दिव्य शक्ति से मथुरा के कारागार के सारे दरवाजे खोल दिए। वासुदेव ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए कृष्ण को गोवर्धन पर्वत पर नंद बाबा और यशोदा के घर भेज दिया ताकि कंस से कृष्ण को बचाया जा सके। कृष्ण की शक्ति और दिव्यता के कारण सभी कठिनाइयाँ पार हो गई और वह सुरक्षित रूप से गोकुल पहुंच गए।
कंस के असफल प्रयास
कंस को कृष्ण के जन्म की खबर मिली और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई असुरों को भेजा। पहले उसने पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जिसने कृष्ण को विष देने की कोशिश की, लेकिन कृष्ण ने उसे अपनी शक्ति से मार डाला। इसके बाद कंस ने शाकट, तृणावर्त, बकासुर, अक्रूर जैसे राक्षसों को भेजा लेकिन कृष्ण ने हर एक को अपनी अद्वितीय शक्ति से हराया।
कंस को यह समझ में आ गया कि कृष्ण को मारने के लिए वह सामान्य प्रयासों से काम नहीं चला सकता,और उसने कृष्ण को मथुरा बुलाने का निर्णय लिया। श्री कृष्ण ने कंस की चुनौती को स्वीकार किया और मथुरा के लिए प्रस्थान किया।
इसके बाद मथुरा में कृष्ण और कंस के बीच महल में भयंकर युद्ध हुआ। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए अपने सभी सैनिकों को भेजा लेकिन कृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। अंततः कृष्ण ने कंस से युद्ध किया और उसे पूरी शक्ति से हराया। कृष्ण ने कंस को अपनी चपलता और शक्ति से पकड़ लिया और उसे मार डाला। कंस का वध हो जाने के बाद मथुरा में शांति की स्थापना हुई और उग्रसेन को मथुरा का राजा फिर से बना दिया। जब श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया तब कान्हा की उम्र 11 साल की थी।
कंस दिन-रात, सोते-जागते सिर्फ कृष्ण का शत्रु भाव से चिंतन करता रहता था। सारा जीवन उसने सिर्फ श्री कृष्ण का ही नाम लिया था। इस वजह से अंत समय में देखते ही देखते उसके शरीर से एक दिव्य तेज निकल कर श्री कृष्ण में समा गया।