Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2024 06:25 AM
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा का जितना महत्व है, उतना ही ज़रूरी है कन्या पूजन। कन्या पूजन पर 9 कन्याओं के रूप में मां के नौ रूपों की एक साथ पूजा की जाती है। नवरात्र की सप्तमी से कन्या पूजन शुरू हो जाता है।
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Chaitra Navratri Kana pujan: नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा का जितना महत्व है, उतना ही ज़रूरी है कन्या पूजन। कन्या पूजन पर 9 कन्याओं के रूप में मां के नौ रूपों की एक साथ पूजा की जाती है। नवरात्र की सप्तमी से कन्या पूजन शुरू हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कन्या पूजन क्यों किया जाता है ? कौन सी कन्या का पूजन करना चाहिए ? और साथ ही कन्या पूजन की विधि आईए जानते हैं...
Why is Kanya Puja performed ? कन्या पूजन क्यों किया जाता है: देवी पुराण के अनुसार इंद्र ने जब ब्रह्मा जी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कन्याओं को देवी दुर्गा का ही रूप माना जाता है इसलिए नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व रहता है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन के बाद ही भक्त अपना व्रत पूरा करते हैं। ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। कन्या पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या तथा तेज की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि जप व दान से भी देवी इतनी खुश नहीं होती जितनी की कन्या पूजन से होती हैं।
कन्या पूजन के दिन कन्याओं की आयु 2 से 10 वर्ष तक होनी चाहिए और कन्या पूजन में कम से कम 9 कन्याओं को पूजन के लिए बुलाना चाहिए। जिसमें से एक बालक भी होना अनिवार्य है। जिसे हनुमानजी का रूप माना गया है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूरी नहीं पूर्ण नहीं होती, उसी प्रकार कन्या पूजन भी एक बालक के बगैर पूरा नहीं माना जाता। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही हैं तो कोई आपत्ति नहीं, उनका स्वागत करना चाहिए।
How to do Kanya Puja कन्या पूजन कैसे करें: कन्या पूजन के दिन पहले सम्मान के साथ कन्याओं को आमंत्रित करें। फिर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा के साथ स्वागत करें। कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ स्थान पर बैठाकर सभी के पैरों को स्वच्छ पानी या दूध से भरे थाल में पैर रखवाकर अपने हाथों से उनके पैर धोना चाहिए। पैर छूकर आशीष लें और कन्याओं के पैर धुलाने वाले जल या दूध को अपने मस्तिष्क पर लगाएं। इसके बाद कन्याओं को माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं।और मां भगवती का ध्यान करते हुए इच्छा अनुसार उन्हें भोजन कराएं। फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और दोबारा से पैर छूकर आशीष लें। ऐसा करने से देवी प्रसन्न होकर आप पर खुशियों की बारिश करती हैं।
कन्या पूजन में दो साल की कन्या को कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छ: साल की बालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या को सुभद्रा का स्वरूप माना जाता है।