Edited By Jyoti,Updated: 22 Jun, 2022 09:38 AM
एक बार श्रीकृष्ण कर्ण की दानवीरता की मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहे थे। अर्जुन इसे सहन नहीं कर पा रहे थे। भगवान कृष्ण ने अर्जुन के मनोभाव जान लिए और अर्जुन को कर्ण की दानशीलता
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एक बार श्रीकृष्ण कर्ण की दानवीरता की मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहे थे। अर्जुन इसे सहन नहीं कर पा रहे थे। भगवान कृष्ण ने अर्जुन के मनोभाव जान लिए और अर्जुन को कर्ण की दानशीलता का ज्ञान कराने का निश्चय किया।
एक दिन एक ब्राह्मण ने अर्जुन से कहा, ‘‘धनंजय! मेरी पत्नी मर गई, उसने मरते समय कहा था कि मेरा दाह संस्कार चंदन की लकड़ियों से ही करना, इसलिए क्या आप मुझे चंदन की लकड़ियों दे सकते हैं?’’
अर्जुन ने कहा, ‘‘क्यों नहीं?’’
उन्होंने कोषाध्यक्ष को तुरन्त पच्चीस मन चंदन की लकड़ियों लाने की आज्ञा दी, परन्तु उस दिन न भंडार में और न बाजार में ही चंदन की लकड़ियों थीं। कोषाध्यक्ष ने आकर असमर्थता व्यक्त की। अर्जुन ने भी ब्राह्मण को अपनी लाचारी बता दी। ब्राह्मण अब कर्ण के यहां पहुंचा। यहां भी वही स्थिति थी, परन्तु कर्ण ने तुरन्त अपने महल से चंदन के खंभे निकालकर ब्राह्मण को दे दिए। उसका महल ढह गया। ब्राह्मण ने पत्नी का दाह संस्कार किया। शाम को श्रीकृष्ण व अर्जुन टहलने के लिए निकले। देखा तो वही ब्राह्मण श्मशान में कीर्तन कर रहा है।
पूछने पर उसने बताया कि कर्ण ने अपने महल के खंभे निकालकर मेरा संकट दूर कर दिया, भगवान उसका भला करें। अब श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले, ‘‘चंदन के खंभे तो तुम्हारे महल में भी थे, पर तुम्हें उनकी याद ही नहीं आई।’’
यह देख-सुनकर अर्जुन लज्जित हो गए।