Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jul, 2024 06:58 AM
कर्मयोग मानव जीवन में कैसे सरलता से अपनाया जा सकता है, इसे यूं समझिए कि नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा को कर्म फल कहा जाता है। कर्मयोग के अभ्यास से हृदय पवित्र हो जाता है। हृदय निर्मल होने पर
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Karma yoga: कर्मयोग मानव जीवन में कैसे सरलता से अपनाया जा सकता है, इसे यूं समझिए कि नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा को कर्म फल कहा जाता है। कर्मयोग के अभ्यास से हृदय पवित्र हो जाता है। हृदय निर्मल होने पर दिव्य ज्योति और आत्मज्ञान का प्रकाश स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाता है। कर्म करते रहो, फल की आशा मत करो। कर्तापन का अभिमान त्यागो और उपभोक्ता बनने की अभिलाषा भी। यह अनुभव करो कि आप भगवान के हाथों के खिलौने हैं, वे आपके द्वारा सभी कार्य सम्पादन करा रहे हैं। सफलता और विफलता में समान और शांत रहना सीखो। कर्मों के बंधन में कभी मत पडऩा। यही कर्मयोग का सार है।
जब आप दूसरों की सेवा करते हो तो यह विचार करो कि आप उनके अंदर निवास करने वाले भगवान की ही सेवा कर रहे हो। आपकी आत्मा ही सब में व्यापक है। अत: दूसरों की सेवा में भी आप अपनी ही सेवा कर रहे हो। भक्ति और ज्ञान का कर्मयोग से समन्वय करो। कर्मयोगी के लिए जिन सद्गुणों का संचय अनिवार्य है वे हैं- विनम्रता, आत्मसमर्पण, त्याग, शांति, साहस, आत्मनिर्भरता, सत्यशीलता, विश्वप्रेम, दया, उदारता, एकाग्रता और हर अवस्था में युक्तिपूर्वक रहने की कला। स्वार्थी, आलसी और चालक व्यक्ति कर्म के अभ्यास के योग्य नहीं हैं।
कर्मयोगी धीर होता है। वह अपने मार्ग के विघ्नों को साहसपूर्वक पराभूत करता है। उसके पास साहस की विपुलता होती है, वह वीरता के साथ अपने पथ की कठिनाइयों पर विजय पाता है, निराश नहीं होता। दानशील बनो। बीमारों की सेवा करो। गरीबों को सहायता दो। अपने देश की सेवा में तन्मय रहो। अपने माता-पिता की सेवा करो। किसी समाज सुधारक अथवा धार्मिक संस्था को अपना सहयोग दो।
सद्भावना के साथ अपने प्रत्येक कार्य करते जाओ। यंत्रवत किसी भी कार्य को करना लाभदायक नहीं। अपने प्रत्येक कर्म को आध्यात्मिक कसौटी पर कसो। सद्भावना से कार्य किया जाए तो वह योग हो जाता है और परमात्मा के चरणों में सुंदर फूल के समान अर्पित किया जा सकता है। कर्मयोग के अभ्यास में भाव का स्थान प्रधान है। कर्मयोग प्रत्येक प्रकार के मानसिक कमजोरियों को दूर हटाता है। भेदभाव और वैमनस्य को समाप्त कर, कर्मयोग का अभ्यास, व्यक्ति और समाज को एकता और समानता की ओर प्रेरित करता है। कर्मयोग से आलस्य और जड़ता का निराकरण होता है। कर्मयोग से स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन की प्राप्ति होती है।