Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 May, 2024 12:02 PM
देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने संघर्ष कर हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। पंजाब का एक ऐसा ही शेर था करतार सिंह
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Kartar Singh Sarabha birth anniversary: देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र करवाने के लिए हजारों नौजवानों ने संघर्ष कर हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। पंजाब का एक ऐसा ही शेर था करतार सिंह सराभा। उनका जन्म लुधियाना के सराभा गांव में 24 मई, 1896 को माता साहिब कौर की कोख से पिता मंगल सिंह के घर हुआ। इनके पिता का बचपन में ही निधन हो गया था जिस कारण उन्हें और छोटी बहन धन्न कौर का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया। इनके तीनों चाचा-बिशन सिंह, वीर सिंह व बख्शीश सिंह ऊंची सरकारी पदवियों पर काम करते थे।
वह प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना से पूरी करके ओडिशा में चाचा के पास चले गए। फिर उच्च शिक्षा के लिए साढ़े 15 वर्ष की आयु में 1 जनवरी, 1912 को अमेरिका पहुंच गए।
अमेरिका में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का अनुभव होने पर इनके मन में देशभक्ति की भावनाएं पनपने लगीं। अमरीका के कैलिफोर्निया में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के लिए 15 जुलाई, 1913 को लाला हरदयाल, सोहन सिंह भकना, बाबा ज्वाला सिंह, संतोख सिंह और संत बाबा वसाखा सिंह दादेहर द्वारा गदर पार्टी का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। करतार सिंह सराभा पार्टी के सक्रिय सदस्य बने और उनकी भेंट ज्वाला सिंह से हुई, जिन्होंने उन्हें बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जहां सराभा रसायन शास्त्र में दाखिला लेकर पंजाबी होस्टल में रहने लगे।
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गदर पार्टी ने 1 नवम्बर, 1913 को ‘द गदर’ नामक अखबार पंजाबी, हिन्दी, उर्दू, बंगाली, गुजराती और पश्तो भाषाओं में प्रकाशित करना शुरू किया। गदर पार्टी के गठन के बाद करतार सिंह ने विश्वविद्यालय छोड़ पार्टी के सह-संस्थापक सोहन सिंह और सचिव लाला हरदयाल के साथ काम करना शुरू कर दिया। अखबार का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ भारतीयों में देशभक्ति की भावना जगाना था।
प्रथम विश्व युद्ध की घोषणा के बाद अक्टूबर 1914 में करतार सिंह सराभा गदर पार्टी के सदस्यों सत्येन सेन और विष्णु गणेश पिंगले के साथ कोलम्बो के रास्ते कलकत्ता पहुंच गए। करतार सिंह ने स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस से मुलाकात के बाद मियां मीर और फिरोजपुर की छावनियों पर कब्जा कर, अम्बाला और दिल्ली में सशस्त्र विद्रोह करने का निर्णय किया।
इसके लिए लगभग 8 हजार भारतीय अमेरिका और कनाडा की सुख-सुविधाएं छोड़ समुद्री जहाजों से भारत पहुंचे लेकिन गदर पार्टी के ही एक मुखबिर कृपाल सिंह ने लोभवश ब्रिटिश पुलिस को विद्रोह की योजना की जानकारी दे दी, जिसके फलस्वरूप 19 फरवरी को बड़ी संख्या में गदर पार्टी के क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे विद्रोह विफल हो गया और ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों से हथियार जब्त कर लिए।
गंडा सिंह नामक ब्रिटिश भारतीय सेना के सिपाही ने करतार सिंह सराभा, हरनाम सिंह टुंडीलत और जगत सिंह को चक नंबर 5, जिला लायलपुर से गिरफ्तार किया। गिरफ्तार करने के बाद करतार सिंह सराभा को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया, जहां उन्होंने खिड़की को काटकर जेल से भागने का प्रयास किया था लेकिन सफल नहीं हो सके।
न्यायाधीश ने फांसी देने का हुक्म दिया। 16 नवम्बर (कहीं 17 नवम्बर), 1915 को करतार सिंह सराभा को उनके 6 अन्य साथियों, बख्शीश सिंह, सुरैण सिंह, हरनाम सिंह, जगत सिंह, व विष्णु गणेश पिंगले के साथ लाहौर जेल में फांसी देकर शहीद कर दिया गया।