Edited By Jyoti,Updated: 30 Oct, 2020 02:06 PM
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धार्मिक शास्त्रों व पुराणों मे बताया गया है कि सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक महत्व है। प्रत्येक वर्ष ये मास शरद पूर्णिमा के तुरंत बाद प्रारंभ होता है
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धार्मिक शास्त्रों व पुराणों मे बताया गया है कि सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक महत्व है। प्रत्येक वर्ष ये मास शरद पूर्णिमा के तुरंत बाद प्रारंभ होता है, जिस दौरान पूरा महीना पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान के बाद भगवान विष्णु की साधना की जााती है। इसके अलावा इस पावन मास में प्रातः उठकर भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी के पौधे को पास रखकर कार्तिक महात्म्य की कथा सुनी जाती है। इस मास के आरंभ होते ही सूर्य की गर्मी प्रतिदिन कम होने लगती है और मार्गशीर्ष माह लगने तक पूरी तरह जाड़े की ऋत आरंभ हो जाती है। इस मास में जातक कार्तिक स्नान पूजा-अर्चना मनुष्य की काम, क्रोध आदि की बाधाओं को शांत करते हुए पूरी तरह से अपने मन को भगवान विष्ण की आराधना में लगा देते हैं।
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इसके अलावा इस पावन मास में सभी सनातन धर्म के लगभग तमाम मंदिरों में महीना भर जो कथा सुनाई जाती है, उसमें विद्वानों व ब्राह्माणों द्वारा जातक को आत्म संयम, सौहार्द, दान-पुण्य एवं परोपकार आदि से जुडे़ खास प्रसंग सुनाए जाते हैं। इस दौरान कई मंदिरों आदि में विशेष पूजान अर्चना से साथ-साथ प्रवचन आदि भी किए जाते हैं। अगर इसके विधान की बात करें तो मनुष्य के जीवन में कार्तिक मास शुचिता, स्नान और व्रत की दृष्टि से मोक्ष का सर्वोत्तम साधन माना गया है।
ज्योतिषी विद्वानों के अनुसार कार्तिक मास में व्रत रखने वाले व्यक्ति को मां गंगा, श्री हरि विष्णु, तथा शिव जी सहित सूर्य देव का स्मरण करते हुए जल में प्रवेश करना चाहिए और कमर तक जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। तो वहीं गृहस्थ व्यक्ति के लिए बताया जाता है कि उसे काला तिल तथा आंवले की चूर्ण लगाकर स्नान चाहिए, परंतु विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी हुई मृत्तिका को लगाकर स्नान करना चाहिए।
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इस मास में इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि इस महीने में आने वाली सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितिया, दश्मी तथा त्रयोदशी को खासतौर पर ध्यान रखें कि तिल या आंवले का प्रयोग न हो, इसे वर्जित माना जाता है।
मान्यताएं हैं कि कार्तिक के महीने में पितरों का तर्पण भी किया जाता है, जिससे पितरों को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दौरान व्रती को पावन नदी में स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र धारण कर विधि वत श्री हरि का पूजन करना चाहिए।
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चूंकि इस मास में व्रती के लिए ब्रह्माचार्य का पालन आवश्यक बताया जाता है इसलिए व्रती को तामसी एवं उत्तेजक पदार्थों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।